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‘केवल कृषि कानून नहीं, गैर बराबरी बढ़ाने वाली कोशिशों के खिलाफ है किसान आंदोलन’

संयुक्त किसान मोर्चा ने राष्ट्रीय एकता और भाईचारे के रूप में मनाई गई संत कबीर जयंती

फतेहाबाद, 24 जून। संयुक्त किसान मोर्चा दिल्ली के आह्वान पर किसानों द्वारा आज संत कबीर जयंती को राष्ट्रीय एकता और भाईचारे के रूप में मनायागया। इस अवसर पर फतेहाबाद में एक सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता बलराज सिंह तूर बिगड़ और दिलेर सालमखेड़ा ने की व संचालन योगेंद्र भूथन ने किया। इस मौके पर सालमखेड़ा के किसानों द्वारा मीठे पानी और चावल की छबील भी लगाई गई।
सेमिनार को सुरेश गढ़वाल, मनफूल सिंह ढाका, कल्याण सिंह, रविंद्र हिजरावां, बेगराज प्रधान, मोहनलाल नारंग, देवीलाल एडवोकेट, गुरनाम सालमखेड़ा, पूनमचंद रत्ती, एडवोकेट शाहनवाज, संदीप काजला, जोगिंदर सहित अनेक किसान नेताओं ने संबोधित किया। उन्होंने कहा कि पूरी मानवता को एक समान मानने वाले संत कबीर ईश्वर, भगवान या खुदा को भी इंसान के भीतर ही मानते थे। उन्होंने कहा कि किसानों का वर्तमान आंदोलन वास्तव में सिर्फ तीन काले कानूनों के खिलाफ नहीं है बल्कि गैर बराबरी को बढ़ाने की कारपोरेट घरानों और राजसत्ता की कोशिशों के खिलाफ एक आह्वान है। यह आह्वान खाली शब्दों से नहीं है बल्कि कर्म से भी है। 200 से ज्यादा दिनों से किसान अपना घर-बार, खेती-बाडी दूसरों के सहारे छोड़ के दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे है। आज भारत ही पूरी दुनिया के लोग देख रहे है कि किसान न्याय के लिए सड़कों पर बैठे हैं। न्याय पाने में उनका विश्वास अडिग है और कोई लोभ लालच उनको नहीं डिगा सकता। इस न्याय की और इंसानियत की लड़ाई को अगर कोई बीच में छोडकर भागता है या नुकसान पहुंचाता है तो असल में वह पूरी मानव जाति के साथ धोखा कर रहा होगा।
किसान नेताओं ने कहा कि इंसान को बराबरी की राह पर चलने का ज्ञान तो बहुत समय से हमारे संत कवियों ने दिया है। कबीर साहब साफ कहा करते थे कि एकता और भाइचारे की सिर्फ बाते ना करो, उनको हकीकत में अमल में लाओ। आज भी दलितों में, बैकवर्ड क्लास में शिक्षा, भरपेट भोजन, पानी और मकान का भारी अभाव है। छुआछुत आज भी कायम है। किसान आंदोलन में व्यापक एकता के आह्वान तब ही सफल होंगे जब समाज में एकता और भाइचारे के निरंतर प्रयास होंगे। हमारे समाज में वास्तविक एकता और आपसी भाईचारे की ताकत ही राजसत्ता और कारपोरेट लूट का मुकाबला कर सकती है। इस एकता की राह में जो भी जाति के या धर्म के या लिंग के भेद उनको छोडऩा होगा। किसान आंदोलन में संत कबीर जैसे कवियों को याद करना और उनके जीवन को अपने जीवन में अमल लाना बहुत बड़ी पहल होगा। इससे जो खुशहाली और प्रेम का माहौल बनेगा और आंदोलन को सच्ची कामयाबी मिलेगी। संयुक्त किसान मोर्चा ने सांझी संस्कृति की मिसाल को कायम रखते हुए कबीर जयंती के अवसर पर शहर में निकाली गई झांकी का भी स्वागत किया और सरोपे भेंट किए गए।

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