महंगाई के खिलाफ डीसी ऑफिस से लेकर लाल बत्ती चौक तक किया आक्रोश प्रदर्शन
फतेहाबाद, 8 जुलाई। संयुक्त किसान मोर्चा फतेहाबाद के द्वारा संयुक्त किसान मोर्चा दिल्ली के राष्ट्रीय आह्वान पर लघु सचिवालय से लाल बत्ती चौक तक विशाल जुलूस मार्च और आक्रोश प्रदर्शन किया गया। पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों में बेतहाशा वृद्धि और कमरतोड़ महंगाई के विरोध में फतेहाबाद में प्रदर्शन के लिए समाज के तमाम तबकों के लोग सुबह 10 बजे अपनी बैलगाड़ी, साइकिल, ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल, गाडिय़ों और दूसरे वाहनों को लेकर पहुंचे और लघु सचिवालय के मुख्य गेट के आगे से गाड़ी के आगे रस्सियों से बैलों को बांधकर और संयुक्त मोर्चा के नेताओं ने उस गाड़ी को खींचते हुए पुराना बस स्टैंड, बीघड़ मोड़ से होते हुए लाल बत्ती चौक से होकर वापिस लघु सचिवालय पहुंचे और वहां 8 मिनट हॉर्न बजाकर सरकार के खिलाफ रोष प्रदर्शन किया। शहर में मुख्य सडक़ से रोष मार्च के दौरान शहर के लोगों, दुकानदारों, व्यापारियों, रिक्शा चालकों, मजदूरों, नौजवानों, महिलाओं समेत तमाम तबकों ने आसमान छूती महंगाई के खिलाफ इस प्रदर्शन को जोरदार समर्थन किया और इसमें शामिल हुए। लोगों ने अपनी गाडिय़ों पर खाली सिलेंडर रखकर जोरदार नारों के साथ इस रोष प्रदर्शन में भागीदारी की।
प्रदर्शन का नेतृत्व संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्यों संदीप काजला, रामकुमार बहबलपुरिया, मलकीत फौजी, योगेंद्र भूथन, करमजीत सालमखेड़ा, बंसी सिहाग, रविंद्र हिजरावां, मनफूल ढाका, सुरेश गढ़वाल, कल्याण सिंह, बेगराज, रामेश्वर भोडिया, गुरनाम, कृष्ण भोडिया, इकबाल अजीतसर, सुशील गोदारा, मोहनलाल नारंग, जगबीर तूर, बलराज बिघड़, पूनम चंद रत्ती ने किया। किसान नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार के पिछले 7 साल में पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम दोगुने से भी ज्यादा हो गए हैं। पेट्रोल और डीजल 100 का आंकड़ा पार कर गए हैं जबकि रसोई गैस के दाम 1000 प्रति सिलेंडर के बेहद करीब हैं और यह सब तब है जबकि देश कोरोना जैसी महामारी से जूझ रहा है। लाखों मौतें इस महामारी में स्वास्थ्य ढांचे के फेल होने के कारण कारण हो चुकी हैं और गरीबी और महंगाई अपने शिखर पर है। ऐसे में केंद्र सरकार को चाहिए था कि वह लोगों को जरूरत की सभी चीजें बहुत सस्ते दामों पर राशन की दुकानों पर उपलब्ध करवाने की व्यवस्था करती परंतु इसके उल्ट सरसों का तेल के भाव पिछले कुछ समय में ही 80 से बढक़र 180-200 तक पहुंच गए हैं और दालों के दाम आसमान छू रहे हैं। यही वह कारण हैं जिनको लेकर किसान दिल्ली के बॉर्डर से लेकर हर शहर, कस्बे और गांव तक तीनों काले कानूनों को रद्द करवाने की मांग को लेकर लगातार प्रदर्शन और धरना कर रहे हैं। अगर यह तीनों काले कानून लागू होते हैं तो देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से कुछेक कॉरपोरेट्स और पूंजी पतियों के हाथ में चली जाएगी जिससे मध्यमवर्ग और गरीब जनता के लिए दो जून की रोटी के भी लाले पड़ जाएंगे। यह आंदोलन समाज के सभी मेहनतकश तबकों, किसानों, मजदूरों, दुकानदारों, कर्मचारियों, छोटे व्यापारियों और नौजवानों और महिलाओं सबका है। वास्तव में यह आर्थिक आजादी की लड़ाई है। इसका नेतृत्व किसान कर रहा है।