कांग्रेस प्रत्याशी पवन बैनीवाल को प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा का मजबूत सहारा है तो इनेलो प्रत्याशी अभय चौटाला के सिर पर पूर्व मुख्यमंत्री औमप्रकाश चौटाला का हाथ है लेकिन भाजपा प्रत्याशी गोबिंद कांडा का ‘सीन’ कुछ अलग है, कांडा बंधुओं को खुद से बड़ा पार्टी में कोई दिखता ही नहीं!
ऐलनाबाद। चुनावी रण में यहां हर पल चीजें इतनी स्पीड़ से बदल रही हैं कि सब हैरत में हैं। जिन्हें चुनाव प्रचार के पहले दौर में लग रहा था कि अभय की जीत तो निश्चित है, वह अब कुछ चुप हैं। पवन बैनीवाल को पीछे मान कर चल रहे लोग वक्त की नजाकत को समझने लगे हैं और गोबिंद कांडा के साथ सरकार होने की बात पर मजबूती के दावे करने वाले उनकी ‘पुअर मैनेजमेंट’ देखने के बाद आने वाले दिनों की स्थितियों पर और भी गहराई से मंथन करने लगे हैं।
नये कृषि कानूनों की मुखालफत में किसानों का हमदर्द कहलाने की चाह में जब अभय सिंह चौटाला ने विधानसभा से इस्तीफा दिया था, तब उन्होंने कहा कि अगर वह अपने विधानसभा क्षेत्र में वोट मांगने के लिए न भी जाएं तब भी जनता उनकी झोली वोटों से भर देगी। तब के और अब हालात में फर्क यह है कि इनेलो प्रत्याशी अभय सिंह चौटाला और उनके पिता इनेलो प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री औमप्रकाश चौटाला ऐलनाबाद की गली-गली नाप रहे हैं और वोटों के लिए अपील कर रहे हैं। हालांकि, ऐसा नहीं कि अब तक के चुनाव प्रचार में वह कहीं से भी कमजोर दिख रहे हों लेकिन उन्हें पसीना बहुत बहाना पड़ रहा है। इसी तरह, कांग्रेस प्रत्याशी पवन बैनीवाल को जब टिकट मिली और पूर्व विधायक भरत सिंह बैनीवाल ने उनके खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल लिया तो सभी को लगा कि चुनाव में पवन बैनीवाल पिछड़ जाएंगे। कांगे्रस प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने बहुत ही अच्छी रणनीति के तहत भरत सिंह बैनीवाल को मनाया और आखिरकार कुछ दिन बाद भरत सिंह बैनीवाल ने ऐलान किया कि वह कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ेंगे और कांग्रेस हाईकमान के साथ रहेंगे। हालांकि, उन्होंने यह भी जरूर कहा कि वह कांगे्रस के साथ हैं, पवन बैनीवाल के साथ नहीं। इस स्थिति में यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि अगर पवन बैनीवाल की मैनेजमेंट जरा भी कमजोर रही तो उन्हें भीतरघात कहां से और कितनी हो सकती है।
अब बात करें भाजपा प्रत्याशी गोबिंद कांडा की तो ऐसा नहीं कि वह मुकाबले में नहीं दिख रहे, और न ही ऐसा है कि उनका चुनाव प्रचार धीमा है। किसान आंदोलनकारियों के विरोध के बावजूद कांडा बंधुओं ने भाजपा के किसी बड़े नेता के साथ के बावजूद जिस तरह से गांवों में जोरदार प्रचार किया और यह जताया कि वह हर तरह की स्थितियों से निपटने में सक्षम हैं तो जनता का भी भरोसा उन पर बढ़ा है। 20 अक्टूबर से पार्टी के बड़े नेताओं के ऐलनाबाद हलके में लगातार कार्यक्रम रहेंगे और पार्टी कांडा के लिए जोर लगाएगी। इसी बीच, यहां यह बात अहम है कि कांडा बंधुओं का ‘ओवर कांफिडेंस’ भाजपा के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। क्योंकि, बताया जा रहा है कि पार्टी की टीम और कांडा की टीम में वह तालमेल नहीं है जो होना चाहिए। चुनाव प्रचार का दूसरा दौर शुरू हो चुका है और फैसले लेने की ‘स्टेज’ पर कोई दिख नहीं रहा।
खैर, यह तो तय है कि इस चुनाव में ऐलनाबाद की जनता सभी नेताओं की नाक रगड़वा देगी और जो कोई भी किसी ‘वहम’ में है, उसे आईना दिखाएगी। यह सब टिप्पणी उन हालात के आधार पर हैं जो ऐलनाबाद के चुनावी रण मे बन रहे हैं और आने वाले दिनों में भयंकर तरीके से सामने आएंगे। बहरहाल, चुनाव प्रचार के पहले चरण में जो स्थितियां रही और दूसरी दौर में जो खामियों को सुधारने का समय होता है, उसमें कौन सी पार्टी कितना काम कर पाती है, यह देखना दिलचस्प रहेगा।