इनेलो प्रत्याशी अभय सिंह चौटाला और कांग्रेस प्रत्याशी पवन बैनीवाल को तो करीब-करीब यह अहसास है कि उन्हें ‘अंदरुनी चोट’ कौन मार सकता है लेकिन भाजपा प्रत्याशी गोबिंद कांडा को यह मालूमात करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी कि उनकी पीठ में राजनीतिक ‘खंजर’ कौन घोंपना चाहता है!
ऐलनाबाद। भले ही ऐलनाबाद के सियासी संग्राम में एक-दूसरे पर आंखें तरेर रहे अभय चौटाला, पवन बैनीवाल और गोबिंद कांडा राजनीति के धुरंधर हों, लेकिन कभी भी ऐसा कोई चुनाव नहीं बीता जिसमें किसी को भीतरघात न हो हुई हो। वह बात अलग है कि कौन कैसे और किस हद तक ‘अपनों के वार’ से बच पाता है। ऐलनाबाद उपचुनाव में फिलहाल जो स्थिति दिखाई दे रही है, उसमें तीनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस, भाजपा और इनेलो को इस बार जबरदस्त भीतरघात का सामना करना पड़ेगा। सबसे ज्यादा नुक्सान की स्थिति कांडा के लिए बनती दिख रही है। क्योंकि, चौटाला और बैनीवाल को तो इस बात का आभास है कि कौन है जो उन्हें ‘अंदरुनी चोट’ मार सकता है लेकिन गोबिंद कांडा को यह मालूमात करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी कि उनकी पीठ में राजनीतिक ‘खंजर’ कौन घोंपना चाहता है!
सबसे पहले बात करते हैं कि इनेलो प्रत्याशी अभय सिंह चौटाला की। राजनीति के जानकार मानते हैं कि अभय से सियासत का कोई भी ‘खेल’ अछूता नहीं है। इसलिए, उन्हें यह पता है कि पहले और अब में फर्क क्या है। पार्टी जब सत्ता या मजबूत विपक्ष में होती है तो चुनाव के रंग कैसे होते हैं और जब पार्टी के हाथ बिलकुल खाली हों तो चुनाव जीतने में जोर कितना लगता है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि अभय चौटाला को जो भीतरघात होगी, उसका सबसे बड़ा कारण रहेगा खुद अभय चौटाला का ‘आवरण’। अंदर से टूट चुके पार्टी के अनेक नेता व कार्यकर्ता चौटाला के ‘औरा’ से इतना भय खाते हैं कि उनके सामने वास्तुस्थिति रखने की हिम्मत नहीं कर पाते और न ही दिल से पार्टी के लिए काम कर पाते हैं। इस बार, अगर कोई और उम्मीदवार उन्हें अभय से थोड़ा सा भी मजबूत दिखा तो वह ‘मौका’ गंवाएंगे नहीं। इसके अलावा ‘मूल रूप’ से कुछ लोकदलिए सत्ता की भागीदार जजपा के लिए पर्दे के पीछे से इसलिए काम करेंगे, क्योंकि भविष्य सुरक्षित रखने की चाह सबको है। ऐलनाबाद में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही जन नायक जनता पार्टी कभी भी ऐसा नहीं चाहेगी कि इनेलो में जरा सा भी ‘खून’ बचा रह जाए। राजनीतिक जानकार तो यहां तक कहते हैं कि जजपा के लिए अभय चौटाला का हारना जरूरी है, जीते भले ही कोई भी। हालांकि, इस सब परिस्थितियों से अभय अनजान नहीं हैं और इसलिए ‘डैमेज कंट्रोलà करने का विकल्प उनके पास खुला है।
कांग्रेस प्रत्याशी पवन बैनीवाल के साथ भी कई तरह के संकट हैं। पिछले काफी समय से वह भाजपा में रहे। चेयरमेन का पद भी मिला। पार्टी में ‘ठीक-ठाक’ तवज्जो भी मिली, किंतु चुनाव से कुछ ही दिन पहले कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा में आस्था व्यक्त करते हुए वह कांग्रेस में शामिल हो गये। जुबान की धनी कुमारी सैलजा ने पवन से अपना वादा निभाया और ऐलनाबाद उपचुनाव में पवन बैनीवाल को कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतार दिया। इस फैसले के पीछे बड़ी वजह यह थी कि 2014 और 2019 के चुनाव में पवन बैनीवाल ने इनेलो के अभय सिंह चौटाला को कड़ी टक्कर दी थी। 2019 के चुनाव में भाजपा को पवन बैनीवाल की वजह से इतने वोट मिले, जो उससे पहले भाजपा को कभी नसीब नहीं हुए। इस सब के बीच, जो चूक रह गई वह यह कि पूर्व विधायक भरत सिंह बैनीवाल को कांग्रेस ने ‘चला हुआ कारतूस’ मान लिया। बैनीवाल को मनाने-रिझाने में कांग्रेस के पसीने निकल गये। इसके अलावा कुमारी सैलजा के अलावा अभी तक कोई भी और बड़ा कांग्रेस नेता पवन बैनीवाल के साथ खड़ा नहीं दिखता। बेशक, आने वाले दिनों में स्थितियां बदलेंगी।
अब बात करते हैं कि भाजपा प्रत्याशी गोबिंद कांडा की। चुनाव की घोषणा होने के बाद अचानक से हरियाणा लोकहित पार्टी को छोड़ कर गोबिंद कांडा भाजपा ज्वाइन करते हैं और दो ही दिन मे टिकट लेकर ऐलनाबाद में चुनाव प्रचार शुरू कर देते हैं। राजनीति के जानकार मानते हैं कि यह स्थिति उन तमाम भाजपा नेताओं को अपने मुंह पर तमाचे जैसी महसूस हुई, जो लाइन लगा कर ऐलनाबाद से भाजपा की टिकट मांग रहे थे। जाहिर है कि पार्टी के ही यह नेता ऐसा कभी नहीं चाहा सकते कि उनकी सियासी जमीन पर एक धनबली कब्जा कर ले। इसके अलावा मदद के नाम पर ऐलनाबाद के नजदीकी हलके से विधायक रणजीत सिंह चौटाला, जो कि सरकार में मंत्री भी हैं, उनका यहां बहुत बड़ा रोल रहने वाला है। सामाजिक नातों के तौर पर ऐलनाबाद और रानियां बहुत करीब से जुड़ा हुआ है। राजनीति की समझ रखने वाले मानते हैं कि अगर रणजीत सिंह ने कांडा की मदद की तो उन्हें अपने भविष्य पर खतरे के बादल मंडराते दिखाई देंगे। क्योंकि, इससे पहले गोबिंद कांडा रानियां से उनके सामने चुनाव लड़ चुके हैं। खैर, यह तो वह कुछेक चुनिंदा कारण हैं जो कांडा को नुक्सान पहुंचाएंगे। इसके अलावा भी ऐसा बहुत कुछ होगा, जिसे समझ पाना शायद कांडा के लिए मुमकिन न हो।
बहरहाल, ऐलनाबाद के चुनाव को इस बार बहुत ही पारखी नजर से देखने-समझने वाले लोग ऐसा मान कर चल रहे हैं कि इस बार बहुत सी स्थापित धारणाएं ध्वस्त होंगी और ऐलनाबाद के लोगों का ‘स्टैंड’ भी कुछ शर्तों के साथ सभी उम्मीदवार को दिखाई देगा।