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Sunday, November 24, 2024
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एडवोकेट विरेन्द्र को जनबल, राजेंद्र खिच्ची को धनबल, हरदीप को पहल और सुभाष को डेरे पर भरोसा!

स्थानीय निकाय चुनाव में फतेहाबाद नगर परिषद चेयरमैन पद के लिए मैदान में डटे यह चारों प्रमुख प्रत्याशी जनसंपर्क के जरिए लोगों की नब्ज टटोलने में जुटे हैं

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आरके सेठी
फतेहाबाद। फतेहाबाद नगर परिषद चुनाव में चेयरमैन पद के लिए होने वाला घमासान किसी से भी छिपा नहीं है। आने वाले दिनों में चेयरमैन पद के प्रत्याशी एक दूसरे पर आक्रामक रूप से जुबानी हमले करेंगे। फिलहाल चेयरमैन पद के लिए चुनावी रण में एडवोकेट विरेंद्र, राजेंद्र खिच्ची, हरदीप सिंह और सुभाष धानियां प्रमुख तौर पर मैदान में हैं। खासतौर पर जिक्र करने वाली बात यह है कि इन चारों ही उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने के तरीके अलग-अलग रहने वाले हैं। सभी का इतिहास यह बताने में मददगार साबित होगा है कि कौन किस तरीके से अपनी जीत को लेकर किस तरह के प्रयासों को अपनाता है। एडवोकेट विरेंद्र पेशे से वकील हैं और समाज के हर तबके से जुड़ाव रखते हैं उनका आज तक कभी किसी विवाद से कोई नाता नहीं रहा और अपनी सरल-सादे व्यवहार – स्वभाव के बूते वह किसी को भी अपना बना लेने में सक्षम हैं। दूसरे प्रत्याशी राजेंद्र खिच्ची एक व्यापारी हैं और फतेहाबाद में बालाजी गैस एजेंसी के नाम से बरसों से गैस एजेंसी चलाते आ रहे हैं। खिच्ची का संपर्क शहर के सिर्फ बड़े लोगों से ही है। क्योंकि, उन्हें व्यापार के सिलसिले में सिर्फ बड़े लोगों की ही जरूरत पड़ती है। आम लोगों से उनका सीधा संपर्क में होना उनकी राह में बड़ा रोड़ा साबित हो सकता है। व्यवहार – स्वभाव में खिच्ची बिल्कुल सामान्य नजर आते हैं और मिलनसार भी हैं। इसी तरह हरदीप सिंह करीब दशक भर से भी ज्यादा समय से समाज के आम लोगों के बीच में रहे हैं और समाजिक कार्यों में उनकी दिलचस्पी हमेशा से रही है। हरदीप को लेकर सबके मन में सहानुभूति तो जरूर है लेकिन उन्हें अभी यह साबित करना होगा चेयरमैन पद की जिम्मेदारियों और आम जनता के प्रति जवाबदेहियों के संदर्भ में उनकी रणनीति क्या है। चौथे प्रत्याशी सुभाष धानियां बचपन से ही डेरा सचा सौदा से जुड़े हुए हैं और माना जा रहा है कि डेरा सच्चा सौदा के वोटों के भरोसे ही चुनाव मैदान में डटे हैं। मूल रूप से अध्यापन कार्य से जुड़े रहे धानियां का नाम और चेहरा सर्वव्यापक रूप से फिलहाल पूरे शहर को प्रभावित नहीं कर पा रहा है।

खैर, अब बात करते हैं कि इन चारों प्रत्याशियों की राजनीतिक सामाजिक आर्थिक या किसी भी तरह के वह आधार कौन से रहेंगे जो इनकी मदद करेंगे। सबसे पहले बात करते हैं एडवोकेट वीरेंद्र की। वीरेंद्र पेशे से वकील हैं तो जाहिर सी बात है कि उनका संपर्क का दायरा भी काफी बड़ा है और आर्थिक रूप से भी वह साधन संपन्न हैं। इसके अलावा सर्वजातिय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे एडवोकेट विरेंद्र के पक्ष में सबसे बड़ी बात यह जाएगी कि उन्हें अनेक भाजपाइयों का भी “अंदरखाते” समर्थन मिलेगा, जिन्हें राजेंद्र खिच्ची के भाजपा प्रत्याशी होने से एतराज है। इसके अलावा अन्य राजनीतिक दल जो खुलकर चुनावी मैदान में नहीं हैं, वह भी एडवोकेट विरेंद्र की चुनावी रणनीतियों को मजबूती देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे। अगर बात करें राजेंद्र खिच्ची की तो उन्हें विधायक दुड़ाराम का सीधा आशीर्वाद हासिल है। विधायक के साथ के बाद उनके पास अपने व्यापारिक “तिकड़में” हैं। खिच्ची के धनबन के अलावा ऐसे कोई बड़ी चीज उनके लिए सहायक होती नहीं दिख रही जो उन्हें जीत के प्रति आश्वस्त करे सके। तीसरे प्रत्याशी हरदीप सिंह चुनावी रण में सबसे पहले उतरने वाले प्रत्याशी हैं। सबसे पहले ठोक- बजाकर चुनाव लड़ने का ऐलान करने का जिगरा हरदीप ने दिखाया तो लोगों ने भी सोशल मीडिया पर उनका साथ निभाने का हर संभव भरोसा दिलाया। हरदीप बेशक आर्थिक रूप से मजबूत न हों, लेकिन इन चुनाव में हरदीप अपने आप को राजनीतिक तौर तो जरूर खुद को स्थापित कर ही लेंगे। चौथे प्रत्याशी आम आदमी पार्टी की ओर से मैदान में डटे सुभाष धानियां की हालत भी भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र खिच्ची जैसी ही है। राजेंद्र भी टिकट का ऐलान होने से कुछ दिन पहले ही भाजपा के झंडे तले आए और सुभाष धानियां भी चुनाव से ऐन पहले आम आदमी पार्टी में शामिल हुए थे। सुभाष धानियां को डेरा सचा सौदा के अलावा किसी और आधार की तलाश में जुटे हुए नहीं देखा जा पा रहा है। बेशक, सुभाष धानियां समाज में एक स्वच्छ छवि की वजह से निर्विवाद प्रत्याशी हैं। लेकिन उन्हें जिताने के लिए आम आदमी पार्टी कितनी गंभीरता से काम करती है, यह देखना ज्यादा जरूरी है।

यहां यह भी जिक्र करने लायक बात है कि भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र खिच्ची और सर्वजातीय प्रत्याशी एडवोकेट विरेंद्र बाकी सभी प्रत्याशियों से ज्यादा स्पीड से अपनी हर रणनीति को गंभीरता से अमलीजामा पहना रहे हैं।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि चुनावी रण में धनबल और जनबल के मुकाबले की स्थिति में बेशक जीत जनबल की ही होती है लेकिन धनबल अनिवार्य रूप से एक ऐसी स्थिति है जो किसी भी व्यक्ति को मजबूती देती है। देखना दिलचस्प रहेगा कि जनबल के भरोसे चुनाव मैदान में डटे और तेजी से आगे बढ़ रहे एडवोकेट विरेंद्र जनबल के साथ-साथ धनबनी को पटखनी देने के लिए किन तरीकों और नीतियों पर अमल करते हैं।

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