
परिवार नियोजन के सिलसिले में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पति की ओर से परिवार नियोजन के बारे में अपनी राय जाहिर करना और पत्नी को तीन साल बाद बच्चा पैदा करने के लिए कहना कू्ररता की श्रेणी में नहीं आता। कर्नाटक हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति डॉ. एचबी प्रभाकर शास्त्री की अध्यक्षता वाली एकल-न्यायाधीश पीठ ने इस सिलसिले में डॉ. शशिधर सुब्बान्ना और उनकी मां की पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया और भारतीय दंड संहिता की धारा 498-्र और 34 के साथ-साथ दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए उनकी निचली अदालत की सजा को पलट दिया। मामले के अनुनसार एक महिला ने इस सिलसिले में अदालत में याचिका दायर की। शिकायतकर्ता महिलाने ने दावा किया कि उनकी शादी की पहली रात को, उसके पति ने उससे कहा कि वह लगभग तीन साल तक बच्चा नहीं चाहता है और वह अपनी एमएस डिग्री पूरी करने के बाद इस बारे में सोचेगा। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि, पति और पत्नी के बीच एक चर्चा है कि उन्हें कब बच्चा होना चाहिए या एक पति या पत्नी बच्चे के बारे में क्या सोचते हैं और उनके लिए सबसे अच्छा समय कब होगा, पति-पत्नी के बीच एक अच्छी परिवार नियोजन के लिए एक आम चर्चा है। नतीजतन, सिर्फ इसलिए कि पति अपनी राय व्यक्त करता है, इसे उत्पीडऩ या कू्ररता नहीं माना जा सकता है।