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देवीलाल-भजनलाल के दोस्ताने और राजनीतिक दुश्मनी की कहानी है फिल्मी

-अब एक बार फिर से देवीलाल परिवार के सदस्यों के साथ दोस्ती के बढ़ रहे कदम

-आधा दर्जन से अधिक चुनावों में आमने-सामने आ चुके हैं दोनों परिवारों के सदस्य

फतेहाबाद, 20 अगस्त (जन सरोकार ब्यूरो) : हरियाणा के हिसार, सिरसा और फतेहाबाद जैसे इलाकों में सियासी समीकरण अब तेजी से बदल रहे हैं। आदमपुर विधानसभा सीट से कुलदीप बिश्रोई के त्यागपत्र देने के बाद प्रदेश के इन तीन जिलों में राजनीतिक तस्वीर बदली हुई नजर आ रही है। कभी आपस में धूर विरोधी रहे चौधरी देवीलाल परिवार और चौधरी भजनलाल परिवार के सदस्य एकसाथ आ रहे हैं। चौधरी देवीलाल के बेटे और बिजली एवं जेल मंत्री चौधरी रणजीत सिंह शुक्रवार को हिसार के बिश्रोई मंदिर में पहुंचे। रणजीत सिंह ने साफ कर दिया कि आदमपुर में कुलदीप के सामने कोई सोच-समझ कर ही चुनाव लड़ें। रणजीत सिंह खुद 2008 में हुए आदमपुर उपचुनाव में चौधरी भजनलाल के सामने चुनाव लड़ चुके हैं। खास बात यह है कि कुलदीप अब भाजपा में हैं। प्रदेश में इस समय भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार है। खुद दुष्यंत चौटाला उपमुख्यमंत्री हैं। देवीलाल घराने के साथ चुनावों में आमने-सामने की भजनलाल परिवार की पुरानी और लंबी कहानी है तो देवीलाल परिवार के साथ राजनीतिक याराने की कहानी उससे भी पुरानी है। यह कहानी लंबी है। दिलचस्प है। चौधरी देवीलाल और भजनलाल की दोस्ती की कहानी बेमिसाल रही है। एक ऐसा दौर था जब ये दो लाल एक साथ थे। इस कहानी का दूसरा हिस्सा दोस्ती में अदावत का है। दूसरे हिस्से में दोस्ती दुश्मनी में बदलती है। फिर इस परिवार के कई सदस्य चुनावों में आमने-सामने आ चुके हैं।

दरअसल चौधरी भजनलाल ने साल 1952 में गांव के सरपंच से अपनी सियासी कॅरियर का आगाज किया। परिवार पाकिस्तान के बहावलपुर से आया था। जिस सन में भजनलाल गांव के सरपंच बने, उसी सन में चौधरी देवीलाल संयुक्त पंजाब के समय सिरसा से विधायक चुने गए थे। देवीलाल और भजनलाल की उम्र में सोलह साल का फासला था। सियासत में भी यह नजर आया। भजनलाल पहली बार 1968 में आदमपुर से विधायक बने थे। भजनलाल 1970 से लेकर 1975 तक बंसीलाल की सरकार में कैबीनेट मंत्री रहे। 1968 से 1970 तक ताऊ देवीलाल बंसीलाल की सरकार में खादी बोर्ड के चेयरमैन थे। 1975 के बाद भजनलाल की बंसीलाल से अनबन होनी शुरू हुई। यह वो दौर था जब देश में इमरजैंसी लागू हुई। इसी बीच 1971 में देवीलाल ने कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। 1972 में देवीलाल ने तोशाम से बंसीलाल जबकि आदमपुर से भजनलाल के खिलाफ चुनाव लड़ा। खैर 1977 में इमरजैंसी हटने के बाद पहले लोकसभा के और फिर हरियाणा विधानसभा के चुनाव हुए। यहां से शुरू हुई देवीलाल और बंसीलाल के राजनीतिक दोस्ताने की शुरूआत। ताऊ देवीलाल ने भजनलाल को आदमपुर से जनता पार्टी की टिकट दी। जनता पार्टी को 75 सीटों पर जीत मिली। देवीलाल मुख्यमंत्री बने और भजनलाल उनकी सरकार में मंत्री। दो साल तक सब कुछ ठीकठाक चला। इसके बाद इन दो लालों की दोस्ती राजनीतिक दुश्मनी में बदल गई। वो किस्सा-कहानी सब जानते हैं। 1979 में भजनलाल ने जनता पार्टी के विधायकों को अपने पाले में कर लिया। पूरी की पूरी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया। देवीलाल की कुर्सी गिरा दी। भजनलाल खुद सीएम बन गए। बाद में तो इन दो लालों के न जाने कितने ही पारिवारिक सदस्य आमने-सामने हुए। अब डालते है कहानी के उस हिस्से पर नजर जब दोनों परिवारों के सदस्य आमने-सामने आए-

भिवानी में तीन लाल दंगल में, जीते थे कुलदीप

2004 का भिवानी संसदीय चुनाव तो पूरी तरह से ऐतिहासिक था। हरियाणा के इतिहास में पहली बार तीनों लाल घरानों के सदस्य मैदान में थे। कांग्रेस से कुलदीप बिश्रोई चुनावी मैदान में उतरे। हविपा से सुरेंद्र ङ्क्षसह चुनाव लड़ रहे थे तो पहले भी उनके सामने चुनावी ताल ठोक चुके अजय ङ्क्षसह फिर से मैदान में थे। इन सबके बीच भाजपा के बड़े नेता प्रो. रामबिलास शर्मा भी भाजपा से चुनाव लड़ रहे थे। कुलदीप बिश्रोई ने 2,90,806 वोट लेते हुए हविपा के सुरेंद्र ङ्क्षसह को 24 हजार वोट से हराया। सुरेंद्र सिंह को 2,66,393 वोट मिले। अजय ङ्क्षसह 2,41,821 वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहे।

2008 का उपचुनाव, जब भजन के सामने उतरे रणजीत सिंह

2005 में भजनलाल आदमपुर से चुनाव जीते थे। बाद में हजकां बना ली। ऐसे में विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई थी। 2008 में आदमपुर में उपचुनाव हुआ। भजनलाल फिर मैदान में थे। कांग्रेस ने चुनौती देने के लिए चौधरी देवीलाल के मंझोले बेटे रणजीत सिंह को मैदान में उतारा। भजनलाल ने करीब 56,841 वोट लेते हुए रणजीत सिंह को 26 हजार वोटों के अंतर से पराजित किया।

2011 के उपचुनाव में अजय को मिली हार

साल 2009 में भजनलाल हजकां की टिकट पर हिसार सीट से सांसद बने। तीन जून 2011 में भजनलाल का निधन हो गया। अक्तूबर 2011 में हुए उपचुनाव में कुलदीप बिश्रोई और अजय ङ्क्षसह चौटाला के बीच कड़ा मुकाबला हुआ। इस बार कुलदीप ने 3 लाख 55 हजार वोट लेते हुए डा. अजय चौटाला को छह हजार से अधिक वोटों से हराया।

2014 में दुष्यंत-कुलदीप के सामने, हार गए कुलदीप

मोदी लहर के बीच मई 2014 में संसदीय चुनाव हुए। हिसार में चौधरी देवीलाल के पड़पौते और ओमप्रकाश चौटाला के पौते दुष्यंत ने सक्रिय सियासत में कदम रखा। उनके सामने हजकां-भाजपा के सांझे उम्मीदवार कुलदीप बिश्रोई थे। दुष्यंत ने करीब 31 हजार वोटों से जीत दर्ज की।
2019 में भव्य और कुलदीप हुए आमने-सामने
वहीं 2019 के संसदीय चुनाव में एक बार फिर दो लाल परिवारों के पौते आमने-सामने आए। हिसार सीट से जजपा से दुष्यंत ने चुनाव लड़ा तो कांग्रेस से भव्य बिश्रोई ने। भाजपा ने पूर्व मंत्री बीरेंद्र सिंह के बेटे और आईएएस अफसर रहे बृजेंद्र को चुनावी मैदान में उतारा। बृजेंद्र ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की और दुष्यंत दूसरे स्थान पर रहे।

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