कोर्ट ने कहा अपमानजनक भाषा की तुलना किसी महिला की शील के अपमान से नहीं की जा सकती
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट दिल्ली ने फैसला सुनाया है कि अभद्र भाषा की तुलना किसी महिला के शील अपमान से नहीं की जा सकती। जस्टिस देवांशु सजलान की कोर्ट ने कहा कि कोर्ट यह नहीं मान सकता की आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किसी महिला की शील को अपमानित करने के लिए किया गया होगा। इस मामले में शिकायतकर्ता लक्ष्मी नैय्यर जब अपने घर पहुंची तो देखा की उनके घर की छत टपक रही थी। इस पर जब नैय्यर ने अपनी छत पर जाकर देखा को पता चला की ऊपर किराये पर रह रहे परिवान की एसी के पानी के कारण उनकी छत टपक रही थी। इस पर जब उन्होंने एसी का पानी बंद करने के लिए कहा तो आरोप है कि किरायेदार ने उन्हें अभद्र गालियां दी थी। इस केस की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 509 किसी महिला की शील भंग करने की मंशा है। कोर्ट ने कहा कि यह इस कानून की स्थापित स्थिति है कि एक महिला एक महिला का अपमान करने और उसकी शील का अपमान करने में अंतर है। इतना ही नहीं कोर्ट ने कहा कि यह धारा लगाने के लिए केवल एक महिला का अपमान करना काफी नहीं उसकी शील का अपमान होना आवश्यक है। सुनाई के दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि अपमानजनक मौखिक भाषा में अपमान शामिल है लेकिन इसे किसी महिला की शील के अपमान से नहीं जोड़ा जा सकता। इसलिए कोर्ट ने इस मामले में आरोपी अंकित शुक्ला को दोषी नहीं मानते हुए बरी कर दिया।