सिरसा संसदीय क्षेत्र के आम वोटर तक सीधी पहुंच नहीं होना और पार्टी कैडर को नजरअंदाज करना भारी पड़ा, अशोक तंवर के पार्टी में शामिल होने के बाद दावा करना लगीं थीं कि ‘मैं ही लडूंगी’!
आरके सेठी
फतेहाबाद, 13 मार्च। बीजेपी में जिसने ‘मैं’ बोला, वह कहीं का नहीं रहा। इस बात की तसदीक करने के लिए उदाहरणों की कोई कमीं रह गई हो तो सिरसा की सांसद सुनीता दुग्गल का ताजा-ताजा उदाहरण हरेक को मालूम है। आज यानी बुधवार को बीजेपी ने लोकसभा कैंडीडेट की अपनी दूसरी लिस्ट जारी की दी। इस लिस्ट में हरियाणा से भी 6 नामों को ऐलान किया गया है। सिरसा सीट के अलावा सब जगह वही नाम हैं, जिनका जिक्र-चर्चा आम जन मानस में पहले से ही हो रहा था। इन 6 सीटों में से सिर्फ सिरसा सीट पर मौजूदा सांसद सुनीता दुग्गल की टिकट काटी गई है। यहां सिरसा के पूर्व सांसद डॉ.अशोक तंवर को बीजेपी ने अपना कैंडीडेट बनाया है। तंवर कुछ समय पहले ही आम आदमी पार्टी छोडक़र बीजेपी में शामिल हुए थे।
तंवर के बीजेपी में शामिल होते ही सुनीता दुग्गल को आभास हो गया था कि उनकी टिकट पर ‘आंच’ तंवर के रूप में पहुंच चुकी है। हालांकि, ऐसा भी नहीं कि इससे पहले दुग्गल के लिए सिरसा सीट सेफ थी। बीजेपी के एक के बाद एक अनेक सर्वे में उनकी रिपोर्ट नेगेटिव ही रही। जाहिर है, इन हालात में पार्टी को एक जिताऊ चेहरे की जरूरत महसूस हुई और आखिरकार पार्टी ने तंवर पर दांव खेला।
इसी बीच, ध्यान रहे कि दुग्गल के ‘हाईलेवल पॉलिटीकल कनेक्शन’ उन्हें सियासी तौर पर हरकत में रखेंगे। माना यह भी जा रहा है कि उन्हें विधानसभा चुनाव में उतारा जाएगा। आज घोषित हुई बीजेपी की दूसरी लिस्ट में सिरसा सीट से सुनीता दुग्गल का नाम कटने के संदर्भ में कुछ राजनीतिक विश्लेषकों से हुई बातचीत के बाद एक बाद बिलकुल साफ होती है कि उनका ‘ऑफिसर स्टाइल’ सिरसा की पब्लिक को जमा नहीं और रही-सही कसर पार्टी कैडर को नजरअंदाज करके दुग्गल ने खुद के लिए आफतों की रफ्तार को बढ़ाए रखा।
राजनीति के जानकार मानते हैं कि सोशल मीडिया के जरिए सांसद सुनीता दुग्गल ने खुद को जितना पब्लिक के करीब दिखाने की कोशिश की, हकीकत में वह पब्लिक के उतना करीब थीं नहीं। इतना ही नहीं, जीत जाने के बाद न उन्होंने कोई धन्यवादी दौरा किया और न ही सिरसा में अपनी मौजूदगी को बरकरार रखा। पब्लिक ऐसा मानने लगी थी कि हिसार, गुरुग्राम और दिल्ली के सारे के सारे के सारे काम निपटाने के बाद उन्हें जो वक्त मिलता है, उसका ‘सदुउपयोग’ वह सिरसा पहुंच कर जरूर कर लेतीं थीं। बहरहाल, सिर्फ सोशल मीडिया पर एक्टिव रहना किसी जनप्रतिनिधि के लिए उसकी पार्टी में उसके जिताऊ होने का पैमाना नहीं है, यह बीजेपी ने साफ तौर पर जाहिर कर दिया है।