दस साल से दिल्ली में राज चला रही आम आदमी पार्टी को महज 22 सीटें मिली हैं और कांग्रेस पिछले दोनों चुनावों की तरह इस बार भी खाली हाथ रही

जन सरोकार ब्यूरो
नई दिल्ली, 8 फरवरी। दिल्ली की सत्ता से करीब 27 साल से दूर बीजेपी आखिरकार फिर दिल्ली की सत्ता जीत गई है। दिल्ली की 70 में से 48 सीटें जीत कर बीजेपी ने धमाकेदार वापिसी की है। दस साल से दिल्ली में राज चला रही आम आदमी पार्टी को महज 22 सीटें मिली हैं और कांग्रेस पिछले दोनों चुनावों की तरह इस बार भी खाली हाथ रही। दिलचस्प बात यह रही कि आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल खुद चुनाव हार गए हैं। मनीष सिसोदिया सहित पार्टी के कई बड़े चेहरे चुनाव हार गए। इसी तरह, बीजेपी के रमेश बिधुड़ी, दुष्यंत गौतम भी चुनाव हार गए।
भाजपा ने 1993 में 49 सीटें हासिल की थी। पांच साल की सरकार में मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज सीएम बनाए गए थे। 1998 के बाद कांग्रेस ने 15 साल राज किया। इसके बाद 2013 से आम आदमी पार्टी की सरकार थी। हालांकि, 2013 में सरकार करीब एक साल ही चल पाई थी और फिर से चुनाव हुए थे। 2015 के विधानसभा चुनाव में आप ने 67 सीटें जीती थीं। फिर जब 2020 में विधानसभा चुनाव हुए तो उसे 62 सीटें मिलीं और अब 2025 के चुनाव में वह बहुमत से बहुत दूर सिर्फ 22 सीटों पर ही रह गई।
इस बार भाजपा की 40 सीटें बढ़ीं हैं। पार्टी ने 68 पर चुनाव लड़ा, 48 सीटें जीतीं। वहीं, आप को 40 सीटों का नुकसान हुआ। बीजेपी ने पिछले चुनाव के मुकाबले वोट शेयर में 9 फीसदी से ज्यादा का इजाफा किया। वहीं, आप को करीब 10 प्रतिशत वोट का नुकसान हुआ है। कांग्रेस को भले ही एक भी सीट नहीं मिली, लेकिन वोट शेयर 2 प्रतिशत बढ़ाने में कामयाब रही। दिल्ली चुनाव के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने का अच्छा खासा नुकसान आप को उठाना पड़ा है और कई सीटों पर उसका खेल बिगड़ा है। कांग्रेस को इस चुनाव में पिछली बार की तुलना में अधिक वोट मिले हैं। वहीं आप उम्मीदवार उन अधिकांश सीटों पर हार गये जहां कांग्रेस मजबूत स्थिति में थी। कांग्रेस के अलावा असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने भी आप को कुछ नुकसान पहुंचाया। एआईएमआईएम ने दिल्ली की दो विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। हालांकि उसके दोनों उम्मीदवार जीत नहीं दर्ज कर पाए।
आप ने महिलाओं को आकर्षित करने के लिए 2100 रुपये प्रति माह देने का वादा किया, जो पूरे चुनाव में आप द्वारा किया गया एकमात्र बड़ा वादा था। जनता को इस वादे पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि पहले किए गए कुछ वादे केजरीवाल पूरे नहीं कर पाए और उन्होंने सार्वजनिक तौर पर इसे स्वीकार भी किया। इनमें साफ पानी, नए कॉलेज और यमुना को साफ करना अहम थे। पिछले दो चुनावों में आप को मुस्लिम और दलित बहुल इलाकों में बड़ी सफलता मिली थी, लेकिन इस बार ये मतदाता दोनों क्षेत्रों में आप से दूर होते दिखे। दरअसल, जब भी दिल्ली में मुसलमानों को मुश्किल वक्त का सामना करना पड़ा, आप उनके साथ खड़ी होने के बजाय चुप रही। इसका नतीजा यह हुआ कि मुसलमानों ने एकतरफा तौर पर आप का समर्थन नहीं किया।
इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप करीबी मुकाबलों में आप उम्मीदवारों की हार हुई। अरविंद केजरीवाल की पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से उभरी हुई पार्टी है। लेकिन 10 साल सत्ता में रहते हुए ही पार्टी के शीर्ष नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। आबकारी घोटाले में अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को जेल जाना पड़ा। पार्टी उसपर लगे गंभीर आरोपों की सही सफाई नहीं दे पाई। इसके अलावा सीएजी की रिपोर्ट में आप पर अस्पतालों के निर्माण आदि में भी भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया। कैग रिपोर्ट पर चर्चा करने के बजाय आप ने उसे नजरअंदाज करने की कोशिश की। नतीजा यह हुआ कि पूरे चुनाव में भ्रष्टाचार के खिलाफ अस्तित्व में आई पार्टी खुद भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी रही। दिल्ली में शराब घोटाले को लेकर काफी चर्चा थी। आप पर आबकारी नीति में धोखाधड़ी कर करोड़ों रुपए रिश्वत में लेने का आरोप लगाया गया। शराब मुद्दे को कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी ने भी खूब प्रचारित किया। आप इस आरोप का जवाब नहीं दे सकी। चूंकि अदालत ने आप नेताओं को सशर्त जमानत दी थी, इसलिए वे इस मामले पर खुलकर बात तक नहीं कर पाए। बीजेपी की जीत और आम आदमी पार्टी की हार का मूलमंत्र सिर्फ इतना ही है कि दिल्ली एक बार बीजेपी को आजमाने के मूड में थी।