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Saturday, November 23, 2024
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बीजेपी ‘ईमानदारी’ से लड़ी और ‘कांडाओं’ का दिमाग ‘सेंटर’ में रहा तो स्पीड़ से बदलेंगे समीकरण!

भले ही ऐलनाबाद को चौटाला परिवार का गढ़ माना जाता है, लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं कि ऐलनाबाद में बीजेपी की सियासी जमीन नहीं है। बीजेपी ने पिछले चुनाव में इनेलो के अभय सिंह चौटाला को कड़ी चुनौती दी थी।

Ellenabad By Election Exclusive

ऐलनाबाद। हरियाणा में सत्तासीन भाजपा के सामने जींद और बरौदा के बाद ऐलनाबाद का तीसरा ऐसा उपचुनाव है, जिसे वह अपनी नाक का सवाल बना कर लडऩा चाहेगी। हालांकि, बरौदा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बीजेपी को जता दिया था कि कोई कितना भी उन्हें कमजोर मान ले लेकिन उनमें अभी ‘जान’ बाकी है। इसी तरह, ऐलनाबाद में बीजेपी को जीत के लिए एड़ी-चोटी का पसीना इसलिए बहाना पड़ेगा कि अगर बरौदा की तरह यह चुनाव में भी बीजेपी हार गई तो पूरे प्रदेश की सियायत पर इसके मायनों का असर पड़ेगा। और, किसान आंदोलन के प्रभाव का आंकलन भी यह चुनाव करेगा।


सीधे और सरल शब्दों में बात यह है कि जींद में बीजेपी चुनाव इसलिए जीती क्योंकि उसने इनेलो के वहां के विधायक के दिवंगत होने के बाद उनके बेटे को भाजपा ज्वाइन करवा कर उपचुनाव लड़वाया था। यानि, बीजेपी ने एक तीर से वहां शिकार किए और जीत को अपने पाले में ले आई। ठीक इसके विपरित बरौदा में ‘बड़े नाम’ के फेर में फजीहत करवा बैठी। ऐलनाबाद में न तो जींद जैसे हालात हैं और न ही बरौदा जैसे। ऐलनाबाद चौटाला परिवार का गढ़ रहा है और पिछले दो चुनाव से अभय सिंह चौटाला के सामने मजबूती से ताल ठोंकने वाले पवन बैनीवाल की भी इलाके में ठीक पैठ है। बीजेपी के गोबिंद कांडा के लिए भले ही ऐलनाबाद सिवाए रिश्तेदारी के नया है लेकिन कांडा को ‘खेल’ खेलना आता है और इसलिए ही राजनीति के जानकार मानते हैं कि अगर बीजेपी ‘ईमानदारी’ से चुनाव लड़ी और ‘कांडाओं’ का दिमाग ‘सेंटर’ में रहा तो समीकरण स्पीड़ से बदल सकते हैं। इसी बीच, सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि ऐलनाबाद उपचुनाव में किसानों के विरोध के बावजूद बीजेपी अगर यह सीट जीत जाती है तो पूरे प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में यह संदेश बिलकुल साफ हो जाएगा कि वास्तव में धरातल पर आंदोलन में किसान कहीं है ही नहीं। इस स्थिति में बीजेपी के लिए हाल ही में होने वाले पंचायत पर स्थानीय निकाय के चुनाव में ‘संजीवनी’ मिल जाएगी। ठीक इसके विपरित अगर बीजेपी के हाथ से यह चुनाव छूट गया तो सीधा मतलब यह निकलेगा कि किसान आंदोलन ने सरकार को हरा दिया। सिर्फ इतना ही नहीं, यहां बीजेपी की हार का मतलब पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनावों में भी बीजेपी के सांस फूल जाएंगे। राजनीति के जानकार मानते हैं कि भले ही प्रदेश की राजनीति में बीजेपी अपनी रणनीतियों के तहत इनेलो को ‘जिंदा’ रखना चाहती है लेकिन ऐलनाबाद को लेकर बीजेपी कहीं कोई संशय में हो, फिलहाल ऐसा लगता तो नहीं है।


राजनीति को लेकर गहरी समझ रखने वाले लोगों का कहना है कि ऐलनाबाद में चुनाव प्रचार के चल रहे इस तीसरे दौर में तीनों पार्टियों कांग्रेस, भाजपा और इनेलो में जबरदस्त मुकाबला चल रहा है। पहली नजर में कोई किसी से कमजोर नहीं दिख रहा। भले ही, सट्टा बाजार का रुख थोड़ा ‘उथल-पुथल’ भरा है लेकिन धरातल पर स्थितियांं कुछ अलग हैं। वोटिंग में अभी 10 दिन बाकी हैं और इन 10 दिनों में ऐलनाबाद की धरती पर वो सब होगा जो ऐलनाबाद ने चुनावों में पहले कभी नहीं देखा।


बहरहाल, यह देखना काफी दिलचस्प रहेगा कि ऐलनाबाद चुनाव बीजेपी किस हद तक लड़ पाती है, कांग्रेस क्या करामात करेगी और इनेलो के पास ऐलनाबाद का विश्वास जीतने के लिए है क्या?

RK Sethi
RK Sethi
Editor, Daily Jan Sarokar 📞98131-94910
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