विभागों को लिखे गए पत्र में बोस समिति की शिफारिशों को लागू करने का भी है जिक्र

दिल्ली, 31 जून। रक्षा मंत्रालय ने देश भर में सालों से टुकड़ों में पड़ी अपनी जमीन जिसका कई सालों से कोई उपयोग नहीं हुआ है की डिटेल मांगी है। इसकों लेकर मंत्रालय से जुड़े हुए विभिन्न विभागों को पत्र लिखकर ऐसी जमीन के जानकारी मांगी गई है कि मंत्रालय के कितनी जमीन हैं तथा उसका प्रयोग कब तथा किस उद्देश्य से किया गया था।
बीती 6 मई को भेजा गया था पत्र
बीते छह मई को भेजे गए रक्षा मंत्रालय के एक पत्र में कहा गया है कि शेष जमीन को तीन महीने के भीतर संकलित किया जा सकता है और महानिदेशक रक्षा संपदा के साथ अटैच किया जा सकता है। इन अपेक्षित शेष जमीन में से कुछ पुराने ब्रिटिश समय के कैंपिंग ग्राउंड हैं जिनका उपयोग लंबे अभियानों को जारी रखने के लिए किया जाता था। कुछ जमीन पर द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) में स्थापित पुराने अप्रयुक्त हवाई अड्डे हैं। कुछ जमीन अब नागरिक क्षेत्रों के भीतर आते हैं। इसका कुछ ही हिस्सा सैन्य उद्देश्य के लिए होता है। कुछ जमीन पर आयुध कारखानों के पास हैं।
इस समिति की शिफारिशों का किया गया है जिक्र
यह पत्र सुमित बोस समिति की सिफारिशों पर कार्रवाई करने के रक्षा मंत्रालय के निर्णय के आधार पर लिखा दया है। भारत सरकार के पूर्व राजस्व सचिव ने दिसंबर 2017 में 131 सिफारिशों के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। बोस समिति की सिफारिश, रक्षा मंत्रालय द्वारा एक अध्ययन के बाद, तीन श्रेणियों के तहत बांटी गई है।
पत्र में किया गया है ये जिक्र
6 मई को भेजे गए रक्षा मंत्रालय के पत्र में कहा गया है कि खाली भूमि और रक्षा भूमि के उपयोग के संबंध में बोस समिति की सिफारिशों के एक खंड को लागू करने का निर्णय लिया गया है।