ऐलनाबाद उपचुनाव में चुनाव प्रचार के अंतिम दो दिन लगातार जिस शिद्दत के साथ भाजपा प्रत्याशी गोबिंद कांडा को जिताने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने जनसभाएं की, और बेहद दमदार तरीके से इलाके के विकास का वादा किया, उसके बाद पूरे ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र की फिजा जबरदस्त तरीके से बदली महसूस हुई है
ऐलनाबाद, 28 अक्टूबर (जन सरोकार ब्यूरो)। इस बात में कोई दोराय नहीं कि भाजपा-जजपा के प्रत्याशी गोबिंद कांडा ने चुनाव मैदान में उतरते ही अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज करवा दी थी और वह चुनाव प्रचार में लगातार बढ़त भी बनाते गये। लेकिन, अब दो दिन ऐलनाबाद में मुख्यमंत्री मनोहर लाल का आना और गोबिंद कांडा के लिए वोट मांगना सोने पर सुहागा हो गया। मुख्यमंत्री के दौरे के बाद पूरे ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र की बदली फिजा ने ‘गढ़’ वालों के होश फाख्ता कर दिए हैं। सट्टा बाजार से लेकर ‘गली-गली’ में बैठे कथित सियासी खिलाडिय़ों को यह बात नागवार तो भले ही बहुत गुजर रही है, किंतु मन मसोज कर रह जाने के अलावा कर वह कुछ नहीं सकते।
राजनीति के जानकार लोग मानते हैं कि मुख्यमंत्री ने जिस तरह से ऐलनाबाद से भय के खात्मे की बात का बार-बार जिक्र किया और लोगों से कहा कि किसी से डरने की जरूरत नहीं है, इसका बहुत व्यापक प्रभाव मतदाताओं पर पड़ा है और आम आदमी का मुख्यमंत्री की बातों और वादों पर भरोसा और भी बढ़ा है। चुनाव प्रचार के पहले दिन मुख्यमंत्री के साथ-साथ उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने भी इनेलो प्रत्याशी को लेकर जिस तरह से निर्भिक हो कर बहुत कठोर शब्दों में अपनी बात रखी, उससे भी ऐलनाबाद के वोटर के दिमाग में यह बात बैठ गई कि ऐलनाबाद के विकास के लिए ‘चले-चलाए’ आ रहे एक ढर्रे से हटकर वोट देने का वक्त आ गया है।
राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि ऐलनाबाद में जिन भी चुनिंदा लोगों को यह लगता था कि भाजपा नौसीखिया है या किसी पार्टी विशेष या व्यक्ति विशेष को लेकर नरम रवैया रख सकती है, उनका वहम मुख्यमंत्री ने निकाल दिया है। न सिर्फ वहम निकाल दिया है बल्कि यह भी जता है कि भाजपा अपने प्रत्याशी को जिताने के लिए लड़ ही रही है, साथ ही मुख्यमंत्री यह भी चाहते हैं कि विपक्ष में रह कर जो हालत ऐलनाबाद की हुई पड़ी है, वह हालत-हालात बदलें और ऐलनाबाद विकास के साथ चले।
ऐलनाबाद उपचुनाव में हर राजनीतिक घटनाक्रम पर बारीक नजर रखने वाले लोगों को मानना है कि ऐलनाबाद की चुनावी फिजा का बदलना इस बात का संकेत है कि इलाके का आम आदमी बदलाव तो चाह रहा था लेकिन बदलाव का ठोस वादा चाहता था। मुख्यमंत्री ने दो दिन लगातार समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों से सिलसिलेवार मुलाकातें की, जनसभाएं की और मंथन बैठकें भी लगातार हुई। यह सब इसलिए था कि मुख्यमंत्री इलाके की नब्ज समझ सकें और ठोस वादों के जरिए आम आदमी में यह भरोसा जगा पाएं कि सरकार ऐलनाबाद के साथ है और तीन साल सत्ता में ऐलनाबाद की भागीदारी के मायने आम आदमी को समझा पाएं। राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि मुख्यमंत्री का ऐलनाबाद दौरा अपने मकसद साध गया है। क्योंकि, मुख्यमंत्री की जनसभाओं के बाद जो संदेश पूरे ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र में गया है, वह यह है कि ऐलनाबाद में भाजपा प्रत्याशी के जितने का मतलब है कि सरकार में सीधी भागीदारी।
यहां यह बात भी गौर करने वाली है कि मुख्यमंत्री के दौरे से पहले अपनी जीत को यकीनी मान कर बैठे उन लोगों के भी पसीने निकल आए हैं, जिन्हें अपने ‘लठैतों’ पर भरोसा था। चूंकि, मुख्यमंत्री ने विपक्षियों पर तीखे हमले किए हैं और ऐलनाबाद को भयमुक्त बनाने की बात बार-बार दोहराई है। मुख्यमंत्री का मकसद आम आदमी में ‘गढ़’ वालों के प्रति बैठा डर निकालना था और संभवत: मुख्यमंत्री अपने प्रयास में सफल भी हुए हैं। हालांकि, अभी वोटिंग में दो दिन का समय है और इस समय में भाजपा के रणनीतिकारों ने जो प्लानिंग बना रखी है, वह सबको चौंका सकती है। ऐसा कहना भी गलत नहीं होगा कि इनेलो और कांग्रेस को भी अपनी-अपनी जीत का भरोसा है और तीनों प्रमुख पार्टियों के प्रत्याशियों की नींद उड़ी हुई है। ऐलनाबाद की जनता मुख्यमंत्री की बातों और उनके वादों पर कितना भरोसा कर पाती है, यह तो वोटिंग वाले दिन पर पता चलेगा किंतु राजनीति की गूढ़ समझ रखने वाले लोग मानते हैं कि ऐलनाबाद बोल अभी भी चाहे कुछ न रहा हो, पर ‘अंदर ही अंदर’ बदल इतना कुछ चुका, जिसका आभास अभी कम ही लोगों को है।
बहरहाल, चुनाव प्रचार के पहले चरण में जिनको कुछेक लोग नंबर वन मान कर चल रहे थे, वह बराबर आ खड़े हुए हैं। यानि, अब ऐलनाबाद में ‘एकतरफा’ कुछ नहीं रहा। सब बराबर खड़े हैं और दो दिन अभी बाकी हैं। ऐलनाबाद के मिजाज और सभी पार्टियों की रणनीतियों की भीतर तक जानकारी रखने वाले लोगों का मानना है कि इन दो दिनों में जो प्रत्याशी अपने ‘दिमाग’ का जितना
बहरहाल, चुनाव प्रचार के पहले चरण में जिनको कुछेक लोग नंबर वन मान कर चल रहे थे, वह बराबर आ खड़े हुए हैं। यानि, अब ऐलनाबाद में ‘एकतरफा’ कुछ नहीं रहा। सब बराबर खड़े हैं और दो दिन अभी बाकी हैं। ऐलनाबाद के मिजाज और सभी पार्टियों की रणनीतियों की भीतर तक जानकारी रखने वाले लोगों का मानना है कि इन दो दिनों में जो प्रत्याशी अपने ‘दिमाग’ का जितना ज्यादा इस्तेमाल कर लेगा, वह जीत जाएगा। क्योंकि, आगे-पीछे का ‘खेल’अब खत्म हो चुका है। अब है भरोसे की बात।