शादी करने का वादा पूरा करने में विफलता का मतलब यह नहीं माना जा सकता कि वादा ही झूठा था-हाईकोर्ट
-तलाकशुदा महिला ने कराई थी एफआईआर, दोबार शादी करने के लिए साइट पर डाला था बायोडाटा
हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने हाल में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्णय दिया कि विवाह करने के वादे को पूरा करने में विफलता का अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता कि वादा झूठा था। हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की पीठ आईपीसी की धारा 376, 294 और 506 के तहत दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। एक तलाकशुदा महिला की ओर से रेप एवं अन्य धाराओं के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज करवाई गई थी।
दरअसल एक तलाकशुदा महिला जो अपने भाई और भाभी के साथ रहती है और उसका एक चार साल का बेटा है। महिला ने फिर से विवाह करने के मकसद से मैट्रोमोनियल साइट पर अपना बायोडाटा अपलोड कर दिया। बायोडाटा देखकर सचिन जैन नाम के शख्स ने अपनी रुचि उसमें दिखाई और उससे बात की और संबंध बनाए। महिला की ओर से दी गई दलील के अनुसार याचिकाकर्ता ने उसे भोपाल आने के लिए बुलाया, जहां वे आनंद लेंगे, जिस पर अभियोक्ता ने इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता नाराज हो गया और उसे गालियां देने लगा और यह भी बताया कि वह पहले भी मैट्रिमोनियल साइट से ऐसी कई महिलाओं से संपर्क कर चुका है और उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी और उसे ब्लॉक भी कर दिया। पीडि़ता की इस शिकायत पर सचिन जैन के खिलाफ आईपीसी की धारा 376, 294 और 506 के तहत प्राथमिकी दर्ज करवाई गई। इसको लेकर सचिन जैन ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने निर्णय दिया कि विवाह करने के वादे को पूरा करने में विफलता का अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता कि वादा झूठा था। हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि व्यक्ति बलात्कार की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगा यदि यह प्रदर्शित किया जा सकता है कि अभियोक्ता को दिया गया शादी का वादा शुरुआत में झूठा नहीं था जब वे यौन कृत्य में शामिल थे, लेकिन बाद में वह शादी करने के अपने वादे का पालन करने में विफल रहा। अदालत की पीठ ने कहा कि यह विश्वास करना मुश्किल है कि जो पुरुष अपनी मां, बहन और साले के साथ शादी के प्रस्ताव के साथ एक महिला के घर गया है, वह ऊपरी मंजिल पर उसके साथ बलात्कार करेगा। अभियोक्ता की कहानी बल्कि बेतुकी लगती है। ऐसे में इन तथ्यो के आधार पर उच्च न्यायालय ने याचिककत्र्ता सचिन पर दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द करने के आदेश जारी किए।