ऐलनाबाद की जनता ने पूर्व मुख्यमंत्रियों औमप्रकाश चौटाला और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की हुंकार को तो सुन लिया है, अब बस बाकी है तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल का आना और ऐलनाबाद को यह कहना कि ‘गढ़’ जनता ही बनाती है और जनता ही ढहा भी देती है
ऐलनाबाद। हरे रंग की बस में सवार हो कर ऐलनाबाद के गांव-गांव, गली-गली घूमकर वोटरों से ‘सरकार बना दो-सरकार बना दो’ की फरियाद करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री औमप्रकाश चौटाला और ‘अटक-अटक’ कर कांग्रेस के लिए वोट मांगने आए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की बातों को ऐलनाबाद की जनता सुन और समझ चुकी है। अब बस बाकी है तो मुख्यमंत्री मनोहर लाल का ऐलनाबाद में आना और ऐलनाबाद की जनता को यह यकीन दिलाना कि ‘गढ़’ जनता ही बनाती है और जनता ही ढहा भी देती है। अगर मुख्यमंत्री की बातों और वादों में ऐलनाबाद को दम दिखा तो यहां की चुनावी फिजा एकदम से बदल सकती है। वजह साफ है, फिलहाल यहां का वोटर डरा हुआ है और खुलकर कुछ नहीं बोल रहा।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि ऐलनाबाद की सियासत में जींद और बरौदा जैसी स्थिति नहीं है। यहां वोटर भी आक्रामक नहीं है और नेताओं का “अकाल” है। क्योंकि, “चौटालाओं” ने यहां किसी को पनपने ही नहीं दिया। जिस किसी ने भी अपना सिर उठाया, उसे देर-सवेर अपनी कदमों में झुका ही लिया। उदाहरणों-कहानियों की कोई कमीं नहीं है। यही वजह है कि यहां का वोटर इतना सहमा हुआ है कि अपनी बात-अपने विचार और अपना फैसला अपने ही मन में दबाए बैठा है। समाजशास्त्री मानते हैं कि इस तरह की स्थितियों में जो नतीजे आते हैं, अकसर चौंकाने वाले होते हैं। क्योंकि, जब आप किसी के खिलाफ खुलकर बोल नहीं पाते तो उस समय का इंतजार करते हैं जब आप किसी और ज्यादा ताकतवर के साथ होते हैं। जैसे ही आपको यह अहसास होता है कि अब बदला लेने का ठीक समय है तो आप चूकते नहीं हैं और उसे ‘ढहा” ही लेते हैं, जिसने दशकों से आपके साथ बदसलुकियां की होती हैं।
ऐलनाबाद की राजनीति, इतिहास और सामाजिक ताने-बाने की ठीक समझ रखने वाले लोगों का मानना है कि अभी तक ऐलनाबाद का वोटर यह तय नहीं कर पा रहा है कि कौन ‘कम बुरा” है। सभी के ‘काले चिट्ठे” जनता को मालूम हैं, बस कोई बता देता है, कोई छिपा लेता है। तीनों की प्रमुख पार्टियों की ओर से जो उम्मीदवार ऐलनाबाद के चुनाव रण में हैं, वह तीनों की एक-दूसरे के गहरे ‘राजदार” हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्तिगत छींटाकशी की शुरुआत अभय चौटाला ने की तो बीजेपी के गोबिंद कांडा के भाई एवं सिरसा से विधायक गोपाल कांडा ने भी चौटाला पर ताबड़तोड़ हमले किए। अजय चौटाला और दिग्विजय चौटाला जितनी मुखरता से अभय चौटाला के खिलाफ मैदान में डटे हैं, उससे जाहिर है कि अब ऐलनाबाद ‘चौटालाओं” का गढ़ नहीं कहलाएगा। क्योंकि, चौटाला परिवार का एक हिस्सा अभय सिंह चौटाला के पास है तो उससे बहुत ज्यादा बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथा है। बात चाहे डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला की हो, अजय चौटाला, दिग्विजय चौटाला, रणजीत चौटाला या आदित्य देवीलाल चौटाला की हो, सभी के सभी ऐलनाबाद की जनता को पूरी शिद्दत से यह बताने-समझाने में जुटे हैं कि ऐलनाबाद को विकास की जरूरत है, आगे बढऩे की जरूरत है और सरकार ऐलनाबाद की जनता के साथ खड़ी है।
राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि जिस तरह से बीजेपी ऐलनाबाद के चुनावी रण में अपनी पूरी ताकत झोंक रही है और बरौदा जैसे हालात से सबक ले कर आगे बढ़ रही है, उससे लगता है कि वह ऐलनाबाद के वोटर में भरोसा जगा पाएगी। कांग्रेस और इनेलो की ओर से वह सभी नेता जनता की बीच आ चुके हैं, जो उनके पास हैं। बीजेपी की टीम भी मैदान में डटी है आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री मनोहर लाल जब ऐलनाबाद की धरती पर आ कर यहां के बाशिंदों में सरकार और पार्टी के प्रति भरोसा जगा पाएंगे तो यह मान लिया जाएगा कि चुनावी फिजा तेजी से बदलेगी।
बहरहाल, अब सबकी निगाहें मुख्यमंत्री के दौरे पर हैं। मुख्यमंत्री ऐलनाबाद से क्या वादा करते हैं और धरातल पर बातों-वादों पर ऐलनाबाद कितना भरोसा कर पाता है, सारा का सारा ‘खेल” अब इसी बात पर टिका है।