सुप्रीम कोर्ट ने प्रवेश को ठहराया अवैध
जन सरोकार ब्यूरो
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दरवाजे से प्रवेश को अवैध ठहराते हुए 2018 में दंत विज्ञान में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने वाले सात छात्रों के प्रवेश को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने कॉलेजों और छात्रों के इस अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि उनका परिणाम जारी करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि उन्होंने पढ़ाई पूरी कर ली है।
न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को अवैध रूप से प्रवेश दिया गया था। इसके बाद उन्हें पढ़ाई की अनुमति देना अवैधता को कायम रखना होगा। यह कहते हुए पीठ ने छत्तीसगढ़ के डेंटल कॉलेजों में 2018 में दंत विज्ञान में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में सात छात्रों के प्रवेश को रद्द कर दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि प्रवेश की अंतिम तिथि पर भी सीटें खाली रहती हैं, तो संस्थानों / कॉलेजों द्वारा एकतरफा प्रवेश देने का कोई आधार नहीं है और वह भी चिकित्सा शिक्षा निदेशालय, रायपुर, छत्तीसगढ़ को रिक्त सीटों की सूचना दिए बिना।
पीठ ने कहा कि ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं है कि किसी अन्य छात्र को रिक्त सीटों पर प्रवेश के लिए संबंधित संस्थानों / कॉलेजों में प्रवेश के लिए आवेदन करने का कोई अवसर दिया गया था। याचिकाकर्ताओं को कैसे पता चला कि 31 मई, 2018 को शाम 4:30 बजे, संस्थानों / कॉलेजों में सीटें खाली रह गई हैं। छात्रों का संस्थान में प्रवेश अवैध था। उन्हें पिछले दरवाजे से प्रवेश दिया गया।
पीठ ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा छात्रों का प्रवेश रद्द करने के बावजूद याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश के अनुसार अपनी पढ़ाई जारी रखी। लेकिन उच्च न्यायालय को प्रवेश देने या प्रवेश / पाठ्यक्रम जारी रखने का निर्देश देने वाला ऐसा अंतरिम आदेश नहीं देना चाहिए था। उच्च न्यायालय का आदेश कानूनी रूप से ठीक नहीं है।
शीर्ष अदालत ने मामले में भारतीय दंत चिकित्सा परिषद की अपील को स्वीकार करते हुए छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश को रद्द कर दिया।
डेंटिस्ट शैलेंद्र शर्मा व छह अन्य को एमओपी राउंड में भी पीजी की सीटें आवंटित नहीं की गईं, लेकिन समय सीमा समाप्त होने के बाद उन्हें पीजी पाठ्यक्रमों में प्रवेश दिया गया। संबंधित अधिकारियों ने इसे रद्द कर दिया तो उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। मामले में उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया ने शीर्ष अदालत का रुख किया।