मनोहर सरकार अब नायब सरकार हो चुकी है लेकिन ‘नायाब’ हुआ कुछ दिखता नहीं है, सीएम के ओएसडी जवाहर यादव बादशाहपुर से बाहर नहीं निकल पा रहे तो सरकार के पब्लिसिटी एडवाइजर तरूण भंडारी की पब्लिसिटी आज तक किसी को दिखी नहीं।
आरके सेठी
चंडीगढ़, 15 मार्च। हरियाणा में बीजेपी ने भले ही चुनावों के मद्देनजर अपना मुख्यमंत्री बदल दिया हो लेकिन सरकार में अहम सीटों पर जमे कुछेक बड़े चेहरों में बदलाव की दरकार सियासी गलियारों में महसूस की जा रही है। सीएम ऑफिस में पूरा हस्तक्षेप रखने वाले ओएसडी जवाहर यादव, सरकार के चीफ मीडिया कॉर्डिनेटर सुदेश कटारिया और सरकार के पब्लिसिटी एडवाइजर पर मनोहर सरकार में जमकर ‘कृपा’ बरसी है।
जवाहर यादव बीजेपी के प्रदेश के मुख्य प्रवक्ता भी हैं और बहुत महीनों से गुरुग्राम की बादशाहपुर सीट पर अपनी नजरें गड़ाए हुए हैं। एक साथ इतनी जिम्मेदारियों का निर्वाह कोई किस तरह से करता होगा, इस बात का अंदाजा लगाया जाना बहुत ही सरल है। रही बात मुख्यमंत्री ऑफिस में तैनात पब्लिसिटी एडवाइजर तरूण भंडारी की तो उनकी पब्लिसिटी जनता को तो कहीं दिखाई दी नहीं। हां, वह बात अलग है कि बंद कमरों में मीटिंगों में वह मनोहर सरकार को ‘ऑन पेपर’ न जाने क्या-क्या बताते रहे हों।
सुदेश कटारिया 2014 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए और सरकार की मेहरबानियां ऐसी रही कि सीधा ही चीफ मीडिया कॉर्डिनेटर बना दिया गया। इसी तरह, हरियाणा में ‘मीडिया मैनेजरों’ की सरकार ने जो भीड़ लगा रखी है, उनके कामकाज की समीक्षा अगर सरकार कर ले तो उसके बाद चौबीस घंटे भी किसी को उनकी सीट पर न रहने दे। पंचकूला के सेक्टर 4 निवासी तरूण भंडारी मूलरूप से कांग्रेसी थे, जो बीजेपी में शामिल हुए और 18 जनवरी, 2023 को मनोहर सरकार में पब्लिसिटी एडवाइजर बना दिए गए।
जवाहर यादव तो खैर बीजेपी की ‘आंख के तारे’ हैं। माना जाता है कि गुरुग्राम को वही ‘संभालते’ हैं। बीजेपी सरकार की दूसरी टर्म में 24 जनवरी 2023 को जवाहर यादव को फिर से सीएम का ओएसडी लगाया गया था। इससे पहले वह हरियाणा हाऊसिंग बोर्ड के चेयरमैन रहे और पार्टी के प्रचार एवं संपर्क प्रमुख भी रहे। सरकार की पहली टर्म में भी वह मुख्यमंत्री के ओएसडी रहे थे।
सरकार के चीफ मीडिया कॉर्डिनेटर सुदेश कटारिया इतने काबिल हैं कि चंडीगढ़ के अलावा कुछ ही जिले ऐसे होंगे जहां के कुछेक मीडियापर्सन को यह जानते होंगे या वही कुछेक इनको जानते होंगे। बहरहाल, देखना दिलचस्प होगा कि सरकार के खजाने पर ‘बोझ’ बड़े ओहदेदारों को कब सीएम ऑफिस से बाहर की राह दिखाई जाती है या वह नायब सरकार की भी ‘आंख के तारे’ बने रहेंगे।