ऐलनाबाद उपचुनाव में भाजपा, कांग्रेस और इनेलो ने जिन लोगों को ‘वोटों के बाजार’ में उतारा है, वह लोग पहले भी इलाके में सबके देखे-परखे हैं
ऐलनाबाद, 17 अक्टूबर। ऐलनाबाद के वोटरों के सामने जो फिलहाल तीन सबसे मजबूत उम्मीदवार हैं, वह तीनों के तीनों एक से बढक़र एक धनबली और बाहुबली हैं। इन तीनों में से न किसी का रुतबा कम है, न ही किसी के पास धन की कमी है और ना ही किसी के पास बाहुबल की कमी है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि ऐलनाबाद उपचुनाव में वोटिंग से कुछ रोज पहले हालात ऐसे बन जाएंगे कि यह तीनों ही उम्मीददार अपनी-अपनी पार्टियों की ‘पॉलिसी’ के अलावा जीत के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
इस सबसे अलग बात यह कि ऐलनाबाद की जनता मानती है कि इन तीनों में से ‘दूध का धुला’ हुआ कोई नहीं हैं। अभय सिंह चौटाला को इलाके का दबंग नेता माना जाता है। पवन बैनीवाल पर तो आरोपों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। इसी तरह, गोबिंद कांडा पर भू-माफिया को सरंक्षण देने के आरोप तो हैं ही। साथ ही, उनके भाई एवं सिरसा से विधायक गोपाल कांडा पर एयरहोस्टस गीतिका शर्मा और उनकी मां की आत्महत्या मामले में लगे ‘दाग’ इस चुनाव के आने वाले दिनों में भी उन्हें खूब परेशान कर सकते हैं। कांगे्रस, इनेलो और भाजपा प्रत्याशी सहित 19 लोग ऐलनाबाद का विधायक बनने की चाह पाले हुए चुनावी मैदान में है। भाजपा उम्मीदवार गोविंद कांडा को छोडक़र दोनों मुख्य प्रतिद्वंदी अभय सिंह चौटाला और पवन बेनीवाल से ऐलनाबाद के लोग भली-भांति वाकिफ है। क्योंकि अभय सिंह चौटाला इससे पहले लगातार तीन बार विधायक रह चुके हैं और पवन बेनीवाल 2014 और 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की ओर से चुनाव लड़ चुके हैं। तब गोविंद कांडा हरियाणा लोकहित पार्टी के बैनर तले रणजीत सिंह चौटाला के खिलाफ चुनाव रनियां से लड़े थे और हार गए थे। आज रणजीत सिंह चौटाला भाजपा सरकार में मंत्री हैं और स्थितियां ऐसी बनी हंै कि उन्हें अपने ही खिलाफ चुनाव लडऩे वाले गोविंद कांडा की मदद और उनके लिए चुनाव प्रचार करने के लिए ऐलनाबाद की गली-गली घूमना पड़ेगा। हालांकि यह देखना भी बहुत दिलचस्प होगा कि अपने ‘दिल पर पत्थर’ रखकर अपने सियासी प्रतिद्वंदी को वह कितना मजबूत करना चाहेंगे।
पवन बेनीवाल फिलहाल कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। इससे पहले 2014 और 2019 के चुनाव में वह भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार थे। उससे पहले बरसों-बरस ‘चौटालाओं’ के खासम-खास रहे। इस बीच सबसे बड़ा पहलू यह भी है कि कांग्रेस के इलाके के सबसे मजबूत नेता भरत सिंह बेनीवाल को जिस तरह से पार्टी में झटक कर ‘बेदम’ कर दिया, वह आखिरकार क्या करेंगे। क्योंकि, कुछ दिन पहले ही टिकटों का ऐलान होते ही भरत सिंह ने कांग्रेस पार्टी प्रत्याशी पवन बेनीवाल के खिलाफ अपना झंडा बुलंद कर लिया था और साफ कहा था कि वह पवन का साथ नहीं देंगे और चुनाव में उनको करना क्या है, यह उनके वर्कर तय करेंगे। भरत सिंह बैनीवाल 2009, 2010 और 2019 में कांग्रेस की टिकट पर यहां से चुनाव लड़ चुके हैं। अभी एक दिन पहले ही कांग्रेस से लगभग बगावत कर चुके भरत सिंह बैनीवाल को उनके घर जा कर खूब मनाया और उसके बाद भरत सिंह बैनीवाल ने ‘बुझे मन’ से यह जरूर कह दिया है कि वह कांग्रेस में ही रहेंगे और कांग्रेस हाइकमान के साथ चुनाव प्रचार में भी जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वह कांगे्रस के साथ हैं, पवन के नहीं। कल भरत सिंह ने कुमार सैलजा की मौजूदगी में पवन बैनीवाल के पक्ष में जनसभा को भी संबोधित किया। हालांकि, आने वाले दिनों में स्थिति और भी स्पष्ट हो जाएगी कि भरत सिंह बैनीवाल की ओर से कांग्रेस प्रत्याशी पवन बैनीवाल को कितना साथ मिल पाता है।
पूर्व मुख्यमंत्री औमप्रकाश चौटाला के वरदहस्त वाली इंडियन नेशनल लोकदल पार्टी के उम्मीदवार अभय सिंह चौटाला ने जिस तरीके से किसान आंदोलन के पक्ष में अपने पद से इस्तीफा दिया और फिर से चुनाव लडऩे के लिए आगे आए, यह बात उन्हें और उनके समर्थकों को भले ही ‘फेवर’ की बात लग रही हो लेकिन जैसे-जैसे चुनाव प्रचार तेजी पकड़ेगा, यही बात शहर और गांव-गांव में उनके लिए मुश्किलें खड़ी करेगी। कल से पूर्व मुख्यमंत्री औमप्रकाश चौटाला ने अभय सिंह के लिए गांव-गांव घूमकर वोट मांगने शुरू कर दिए हैं। वहीं, गोबिंद कांडा के लिए चुनाव प्रचार में मुख्यमंत्री भी आएंगे। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा अपनी पवन बैनीवाल को जिताने में जितना जोर लगाए हुए हैं, उतनी कोशिशें ‘हुड्डा कैंप’ की ओर से फिलहाल तो नहीं दिखाई दे रही हैं। बेशक यह कहा जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी यहां प्रचार करेंगे। किंतु, देखने वाली बात होगी कि अपनी पार्टी के प्रत्याशी पवन बैनीवाल के लिए वह ‘दम’ कितना लगाते हैं या लगाते भी हैं या नहीं।