आम आदमी पार्टी और बीजेपी में मुकाबला कड़ा उतना ही जितना चार दिन पहले तक था, मंगलवार रात कोई बड़ा ‘उलटफेर’ नहीं हुआ तो ‘नया’ कुछ होने की उम्मीद कम!

जन सरोकार ब्यूरो/आरके सेठी
नई दिल्ली, 4 फरवरी। लीडरों के बोलने की बारी दिल्ली में खत्म हो चुकी है। अब बारी है दिल्ली की, यानी दिल्ली के वोटर की। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सत्ता बचेगी या बीजेपी सत्ता छीन लेगी, यह 8 तारीख को नतीजे बता देंगे। दिल्ली अपनी पसंद का ‘बटन’ पांच तारीख बुधवार को दबा देगी। चुनाव प्रचार के दौरान करीब महीने भर तक दिल्ली के वोटरों को ‘सब्जबाग’ दिखाने वाली सभी पार्टियों के लीडरों को लगता है कि वही जीतेंगे।
आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस की इस चुनाव के केंद्र में रही है। हालांकि, यह कहना भी गलत नहीं होगा कि कांगे्रस ने चुनाव तो बेशक लड़ा लेकिन सत्ता पाने के लिए नहीं। कांग्रेस या तो किसी के जीतने की वजह बन सकती है या किसी के हारने की। दरअसल, दिल्ली की सत्ता पर करीब दस साल से काबिज आम आदमी पार्टी की सरकार इस बार पब्लिक को उतना नहीं ‘रिझा’ पाई, जितना 2015 और 2020 में उसका जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा था। हालांकि, आम आदमी पार्टी सत्ता के करीब दिख रही है लेकिन सीटें घट सकती हैं। वहीं, बीजेपी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव को बहुत की मंझे हुए अंदाज में लड़ा। वोटर के मन से केजरीवाल की इमेज को हटाने की कोशिशें उसने खूब की, नतीजा क्या रहता है, यह कुछ ही दिनों में सामने आ जाने वाला है। हो सकता है कि बीजेपी इस बार पिछले तीनों चुनाव से बेहतर प्रदर्शन करे। दिल्ली के वोटर के बारे में यह हमेशा से माना जाता रहा है कि दिल्ली का वोटर जिसके साथ होता है, खुलकर होता है। सिर्फ 2013 वाले चुनाव में दिल्ली थोड़ी ‘कन्फ्यूज’ रही और नतीजा यह रहा कि एक ही साल में दिल्ली में दोबारा चुनाव करवाने पड़े। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है। कांग्रेस का कमजोर होना या रहना एक तरह से बीजेपी को ‘घात’ लगाता दिख रहा है। बेशक, कुछ सीटों पर कांग्रेस फाइट में है लेकिन वह ‘अंतिम परिणाम’ में ज्यादा कुछ ‘नफा-नुक्सान’ करने की हालत में है नहीं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आज की तारीख में भी बीजेपी और आम आदमी पार्टी में करीब-करीब उतनी की ‘दूरी’ बरकरार है, जितनी चार-छह दिन पहले तक थी। ‘दिल्ली दूर है’, कि बात उन्हें भी सच साबित होती दिख रही है, जिन्हें सत्ता अपनी झोली में ही पड़ी लग रही थी।
दिल्ली का मूड भांपने वाले कुछ राजनीति विश्लेषक कहते हैं कि मंगलवार की रात को अगर कोई बड़ा ‘उलटफेर’ नहीं हुआ तो नतीजों में कुछ ‘नया’ आने की गुंजाइश कम ही है। माना जा रहा है कि मुकाबला है और कुछ कड़ा भी है लेकिन अब सारा का सारा दारोमदार ‘साम-दाम-दंड-भेद’ की पॉलिसी पर आ कर टिक गया है। जिन भी सीटों पर इस पॉलिसी से फर्क पड़ सकता है, उन पर आम आदमी पार्टी और बीजेपी, दोनों की ही निगाह जमी हुई है।
चूंकि, दोनों ही पार्टियों ने ‘फ्री’ का खेल खुलकर खेला है और दोनों को ही लगता है कि वोटर उसे ही पसंद करेगा। किंतु, इस बार बीजेपी ने जिस तरह से दिल्ली चुनाव को नाक का सवाल बना कर रणनीति बनाई, वह आम आदमी पार्टी को बहुत ‘तकलीफ’ दे गई है। बरहाल, महीने भर लीडरों के वादे-दावे सुन-सुन परेशान हो चुकी दिल्ली आखिरकार बुधवार को ‘बटन’ दबा उसे चुन लेगी जो उसे पंसद है और 8 तारीख को उसके फैसले पर मुहर लग जाएगी।