हाल में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी को भी आजीवन काली सूची में नहीं डाला जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि उस सीमा तक काली सूची में डालने का आदेश जारी नहीं किया जा सकता है, जिसमें जिसमें उसने अवधि निर्दिष्ट नहीं की है। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता द्वारा अनुमोदित ठेकेदारों के पैनल से अपीलकर्ता को काली सूची में डालने के आदेश के खिलाफ दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया गया था। अपीलकर्ता ने निविदा सूचना के अनुसरण में कुछ निर्माण कार्यों को करने के लिए अपना प्रस्ताव प्रस्तुत किया। हालांकि, इस प्रक्रिया में यह आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता ने अधिकारियों के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। इस पर उसे कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था। जवाब पर विचार करने के बाद अपीलार्थी को काली सूची में डाल दिया गया। उक्त आदेश को अपीलकत्र्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी जो असफल रही। बाद में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि किसी को आजीवन काली सूची में नहीं डाला जा सकता। उस सीमा तक काली सूची में डालने का आदेश जारी नहीं रखा जा सकता ह,ै जिसमें उसने अवधि निर्दिष्ट नहीं की है। चूंकि आदेश 2013 में बहुत पहले पारित किया गया था और रिट याचिका खारिज कर दी गई थी, इसलिए हम संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करने के लिए अपीलकर्ता को आदेश की तारीख से पांच साल की अवधि के लिए ब्लैकलिस्ट करने का आदेश पारित करना उचित समझते हैं। उत्तीर्ण। यह अपीलकर्ता को राज्य द्वारा विज्ञापित किए जाने वाले कार्यों के संबंध में ठेकेदार के रूप में कार्य करने के लिए कानून के अनुसार नए सिरे से भर्ती करने से नहीं रोकेगा।
किसी को आजीवन काली सूची में नहीं डाला जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
By jan sarokar
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