गोबिंद कांडा और अभय चौटाला की रणनीतियों से निपटने के बारे में तो पवन बैनीवाल तब सोच पाएंगे, जब वह कांग्रेस की ‘अंदरुनी चालाकियों’ से बच पाएंगे
ऐलनाबाद। मौसम बदल रहा है, लेकिन ऐलनाबाद उपचुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी पवन बैनीवाल का पसीना बढ़ रहा है। पसीना बहने और पसीना छूटने का फर्क पवन बैनीवाल को अभी से ही महसूस हो गया है। भले ही, वोटिंग में अभी 9 दिन बाकी हैं लेकिन हुड्डा और सैलजा की आपसी खींचतान में ‘सियासी बलि’ का डर उन पर हावी होता जा रहा है। इनेलो प्रत्याशी अभय चौटाला और बीजेपी प्रत्याशी गोबिंद कांडा से टक्कर लेने के लिए पवन बैनीवाल को अभी कई मोर्चों पर जूझना पड़ेगा।
ऐलनाबाद के गांव जमाल, माधोसिंघाना और कागदाना में बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा और प्रदेश प्रभारी विवेक बंसल सहित अनेक बड़े कांग्रेस नेताओं ने जनसभाएं करके एकजुटता तो दिखानी चाही, लेकिन पवन बैनीवाल के चेहरे पर शिकन बरकरार रही। राजनीति के जानकार मानते हैं कि गोबिंद कांडा और अभय चौटाला की रणनीतियों से निपटने के बारे में तो पवन बैनीवाल तब सोच पाएंगे, जब वह कांग्रेस की ‘अंदरुनी चालाकियों’ से बच पाएंगे। बताया गया है कि पूर्व विधायक एवं कांग्रेस के इलाके के प्रभावशाली नेता भरत सिंह बैनीवाल दिल्ली में अस्पताल में दाखिल हो गये हैं। कांग्रेसी दिग्गजों की बुधवार की रैलियों में उनकी कमीं सभी को अखरी। कुछ राजनीतिक विश्लेषक तो यहां तक कह रहे हैं कि हुड्डा कैंप अपने पर्सनल एजेंडे के सामने पार्टी की परवाह नहीं करेगा। यानि, पवन बैनीवाल की जीत या हार से उन्हें ज्यादा सरोकार महसूस नहीं हो रहा है। चूंकि, पवन बैनीवाल को कांग्रेस ज्वाइन करवाने वाली कुमारी सैलजा हैं और सालों-साल ऐलनाबाद में कांग्रेस को सींचने का काम करने वाले भरत सिंह बैनीवाल हुड्डा कैंप के वफादार माने जाते हैं और भरत सिंह की टिकट काटकर सैलजा ने पवन बैनीवाल को टिकट दिलवाई। ऐसे हालात में, हुड्डा और सैलजा लगभग ‘आमने-सामने’ की स्थिति में हैं। राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि ऐलनाबाद उपचुनाव में अपने प्रत्याशी पवन बैनीवाल की जीत कुमारी सैलजा के लिए उतनी ही जरूरी है, जितनी बरौदा उपचुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए नरवाल की जीत जरूरी थी। बरौदा में अपनी प्रत्याशी को जितवा कर हुड्डा ने साबित कर दिया था कि उनकी अपने इलाके में पैठ कायम है। ठीक इसी तरह, ऐलनाबाद में जब कुमारी सैलजा ने अपनी पसंद के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है तो उन्हें भी यह साबित करना पड़ेगा कि ऐलनाबाद में उनकी साख है और वह अपने उम्मीदवार को जितवा सकती हैं।
ऐलनाबाद में पवन बैनीवाल की जीत या हार के मायने हर पार्टी के लिए लिहाज से अलग-अलग होंगे लेकिन कांग्रेस में ही यह स्थिति उन बहुत सारे हालात से सभी को रु-ब-रु करवाएगी, जो फिलहाल कम ही लोगो को दिख पा रहे हैं। चूंकि, कुमारी सैलजा पहली बार सिरसा संसदीय क्षेत्र से ही सांसद बनीं थीं इसलिए इस इलाके में उनका एक अच्छा-खासा वोट बैंक माना जाता है। कांग्रेस हाइकमान के सामने सैलजा को मजबूत दिखना और हुड्डा कैंप के न चाहने के बावजूद अगर सैलजा अपने प्रत्याशी पवन बैनीवाल को जिता लाती हैं तो सैलजा की सियासी रफ्तार को रोक पाना भूपेंद्र सिंह हुड्डा तो क्या, किसी के लिए भी नामुमकिन हो जाएगा। और अगर, कांग्रेस के हाथ ऐलनाबाद की सीट नहीं आई तो इस बात में यकीन न रखने की कोई वजह नहीं है कि पवन बैनीवाल का सियासी वजूद तो बिखर ही जाएगा, साथ ही सैलजा भी हुड्डा के सामने ‘बौनी’ दिखेंगी। जाहिर तौर पर ऐलनाबाद के चुनावी संग्राम में फिलवक्त जो स्थितियां बनी हुई हैं, वह कांग्रेस प्रत्याशी के पसीने छुटाने वाली हैं और अगर कांग्रेस ने समय रहते अपनी ‘तिकड़मों’ में बदलाव नहीं किया तो उसे खामियाजा भुगतने के लिए भी तैयार रहना होगा।