सिरसा के धनबली विधायक गोपाल कांडा और उनके भाई एवं ऐलनाबाद से बीजेपी के प्रत्याशी गोबिंद कांडा ऐलनाबाद के वोटर की नजर में चढ़ रहे हैं। वजह फिलहाल सिर्फ एक ही है कि अभय चौटाला की दबंगता को कांडा बंधुओं ने बहुत छोटा कर दिया है… या कहें कि बीजेपी सरकार की ओर से स्पष्ट संदेश है कि नहीं चलेगी गुंडागर्दी!!!
ऐलनाबाद। बीजेपी के ऐलनाबाद से उम्मीदवार गोबिंद कांडा यहां के वोटर के दिल-दिमाग में कितनी जगह बना पाए हैं, यह इन स्थितियों से जाहिर होता है कि आम आदमी का ‘डर’ घट रहा है। पहले से यहां ‘राज’ कर रहे लोगों की तुलना होनी शुरू हो गई है। तुलना होना यानि एक ऐसी स्टेज, जहां निर्णायक सिर्फ विवेक है। इस तरह की स्थिति बनना निश्चित तौर पर बीजेपी के लिए फायदे की बात है।
ऐलनाबाद उपचुनाव में इनेलो प्रमुख एवं पूर्व मुख्यमंत्री औमप्रकाश चौटाला आज की तारीख में जो बात कह कर वोट मांग रहे हैं, वह किसी भी भोले से भोले व्यक्ति को भी समझ में आती है कि वह ‘बेसलेस’ बात है। यानि, चौटाला जब सरकार बनाने और सात पीढिय़ों का भला कर देने की बात करते हैं तो आम जन मानस को उनकी यही बातें रह-रह कर याद आ जाती हैं, जो उन्होंने बीसियों सालों में दोहराई हैं। हर बार, हर चुनाव में बस एक ही बात…. ‘सात पीढिय़ों को जुगाड़ कर दूंगा’!!! औमप्रकाश चौटाला तो शायद उम्र के चलते अब बदल न पाएं लेकिन उनके बेटे अभय चौटाला ने भी बदलते वक्त में कहां खुद को बदला। ‘राजों-रजवाड़ों’ वाली उनकी ‘फीलिंग’ के सिर्फ वह ही लोग कायल हैं, जिन्हें तलवे चाटने की आदत पड़ चुकी है। इसके अलावा आज एक छोटा सा मेहनतकश भी किसी ‘चौधरी’ की बकवास को बर्दाश्त नहीं करता है।
खैर, ऐलनाबाद उपचुनाव में चौटाला के इस ‘राजसी तंत्र’ को पहली बार जो मजबूत चुनौती मिल रही है, वह उन ‘कांडाओं’ से मिल रही है, जो उनकी रग-रग जानते हैं। इस बात में भी कोई दो-राय नहीं कि गोबिंद कांडा की छवि किसी सर्वमान्य नेता के तौर पर नहीं है लेकिन कांडा एक ऐसी इमेज तो अब तक बना चुके हैं कि इलाके को बाहुबल के बूते कवर-कंट्रोल करने वालों के सामने उनका कद बराबर का दिखता है। वह इस स्थिति में महसूस हो रहे हैं कि अपने समर्थकों, कार्यकर्ताओं और अपने वोटरों की हिफाजत कर सकें। हालांकि, लोकतंत्र में इस तरह की बातें-व्यवस्थाएं कहने-सुनने में थोड़ी अजीब लगती हैं किंतु, ऐलनाबाद में हालात यह हैं कि जब तक कांडा बंधु चौटाला से मजबूत नहीं दिखे थे तो तीसरे नंबर पर काऊंट हो रहे थे। जैसे ही उन्होंने ऐलनाबाद के वोटर को जताया कि ‘ताकत’ के रूप में वह ‘गढ़-गढ़’ का राग अलापने वालों से ‘इक्कीस’ हैं तो रिस्पोंस जबरदस्त मिलने लगा।
इस सब के बीच, बीजेपी जो कर रही है, वह सबसे अहम है। कांडा को मैदान में उतार कर अभय चौटाला को सबसे पहले इस ‘साइकोलॉजिक प्रेशर’ में डाल दिया कि कहीं कांडा उनके ‘राज’ पब्लिक न कर दें। दूसरा यह कि धनबली से धनबली और बाहुबली से बाहुबली ही लड़ता अच्छा लगता है। कांडा को अपनी टीम और अपनी रणनीतियों पर भले ही कितना भी भरोसा हो, अगर आने वाले तीन दिनों में कांडा ने बीजेपी के ‘रूल’ और खुद की ‘एवरग्रीन’ पॉलिसी को फॉलो किया तो नतीजे वह आएंगे, जो किसी ने सोचे भी न होंगे।
अब तक के चुनाव प्रचार में जो आक्रामकता आमतौर पर अभय चौटाला के हिस्से आया करती थी, वह अब गोपाल कांडा के हिस्से में है। गोपाल-गोबिंद के चेहरे पर झलकता आत्मविश्वास और अभय के चेहरे और आंखों से रिसता गुस्सा बता रहा है कि चीजें कितनी स्पीड से बदल रही हैं। पवन बैनीवाल को कमजोर मानने वाले ‘बुद्धिजीवी’ यह मान कर चलें कि पवन बैनीवाल की हर ‘चाल’ ही यह करेगी कि चौटाला या कांडा, किसके कदम जीत की ओर हैं।
बहरहाल, राजनीति के जानकार यह मानते हैं कि चौटाला को चौटाला की ही भाषा में जवाब देने और हर स्तर पर ‘पूरा आने’ का विकल्प कांडा बंधुओं ने जो ऐलनाबाद को दर्शाया है, वह वाकई असरदायक है। इस सब में जो कमीं रहेगी, उस कमीं को मुख्यमंत्री मनोहर लाल के अलावा और कोई भी पूरा नहीं कर सकता। कुछ भी हो, लेकिन इस बार वैसा नहीं होगा…जैसा हर बार होता आया है।