राजनीति के जानकार मानते हैं कि टिकैत की घोषणा के बाद जिस पार्टी के उम्मीदवार को फायदा होने की उम्मीद दिख रही थी, उसे आज बलबीर सिंह राजोवाल के बयान के बाद जितना नुकसान पहुंचने वाला है, उसका अंदाजा बहुत ही कम लोगों को है।
ऐलनाबाद, 29 अक्टूबर (जन सरोकार ब्यूरो) ऐलनाबाद में रोड शो निकालने और चौपटा में जनसभा करके किसानों को लामबंद होने का आह्वान करने वाले किसान नेता राकेश टिकैत द्वारा एक पार्टी विशेष के उम्मीदवार के पक्ष में वोटिंग की अपील करना संयुक्त किसान मोर्चा के बड़े ओहदेदारों को बिल्कुल नागवार गुजरा है। आज संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेता बलबीर सिंह राजोवाल ने एक वीडियो जारी कर यह कहां कि ऐलनाबाद उपचुनाव में जिस भी किसान नेता ने वोटरों को किसी पार्टी विशेष के उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने का आह्वान किया है वह बिल्कुल गलत है और संयुक्त किसान मोर्चा उस किसान नेता की बात से सहमत नहीं है। राजोवाल ने कल ऐलनाबाद में राकेश टिकैत द्वारा एक पार्टी विशेष के उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने की अपील करने के प्रतिक्रिया स्वरूप अपनी बात कह रहे थे। राजोवाल ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा की यह नीति कभी नहीं रही थी कि वह किसी राजनीतिक संगठन, पार्टी या व्यक्ति को अपना समर्थन दे। उनका विरोध सत्ता से है और वह अपने नीतिगत फैसले पर अडिग हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के नाम पर किसान नेता आम जनता को गुमराह करने का काम न करें। ऐलनाबाद के वोटर ने अपने विवेक से यह फैसला लेना है कि उन्होंने अपना वोट किस उम्मीदवार को देना है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संयुक्त किसान मोर्चा ने कभी भी यह नहीं कहा कि किस पार्टी के उम्मीदवार को जिताने के लिए किसान वोट डालेगा। इससे पहले संयुक्त किसान मोर्चा के ही वरिष्ठ नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने तो ऐलनाबाद उपचुनाव में बिल्कुल खुले शब्दों में यह बात कही थी की किसानों के लिए इस्तीफा देने की बात करने वालों से कोई यह भी तो पूछे कि उनकी सरकारों के वक्त 7 किसानों को मौत के घाट किसने उतारा था। यहां चढ़ूनी का इशारा तत्कालीन चौटाला सरकार में हुए कंडेला कांड की ओर था। चढूनी इससे पहले भी बहुत स्पष्ट शब्दों में है कह चुके हैं कि ऐलनाबाद से चुनाव लड़ने वाले अभय सिंह चौटाला ने जब विधानसभा से इस्तीफा दिया तो उन्होंने कहा था कि वह किसानों के पक्ष में खड़े हैं और तीन कृषि कानूनों के विरोध में वह अपने पद से इस्तीफा देते हैं और तब तक विधानसभा में नहीं आएंगे जब तक नए कृषि कानून खत्म नहीं हो जाते। चढूनी ने कहा था कि जब अभय सिंह चौटाला ने इस्तीफा दे दिया था और यह भी कहा था कि वह दोबारा विधानसभा चुनाव कानून खत्म होने तक नहीं आएंगे तो आखिर वह चुनाव क्यों लड़ रहे हैं। यह जनता को गुमराह करने की वाली बात है।
एक दिन पहले ही चुनाव प्रचार के अंतिम दिन राकेश टिकैत ऐलनाबाद में बिल्कुल राजनीतिक पार्टी के नुमाइंदे के तौर पर नजर आए, ऐलनाबाद में एक बड़ा रोड शो किया गया और चौपटा में जनसभा भी की गई। इन दोनों कार्यक्रमों में राकेश टिकैत का एकमात्र मकसद एक पार्टी विशेष के उम्मीदवार के पक्ष में हवा बनाना रहा और उन्होंने अपने भाषण में ऐसी कोई कसर नहीं छोड़ी जिससे किसी को यह समझने में परेशानी हुई हो कि वह किस उम्मीदवार के पक्ष में किसानों को वोट डालने के लिए कह रहे हैं। एक तरफ जहां उस पार्टी विशेष में इस बात को लेकर उत्साह था कि टिकैत ने उनकी मदद की है वहीं, इलाके का आम किसान बहुत ही ज्यादा भ्रमित हो गया। वह इस बात से बहुत निराश भी दिखा कि संयुक्त किसान मोर्चा ऐलनाबाद में जहां सत्ता के विरोध की बात कर रहा था और कह रहा था कि आम आदमी सिर्फ सत्ता के प्रत्याशी को वोट ना दें, इसके अलावा जहां उनका मन करे- उनका विवेक कहे वह अपना मतदान करें। लेकिन चुनाव प्रचार के अंतिम दिन और बार-बार राकेश टिकैत जब एक पार्टी के उम्मीदवार की हिमायत में कसीदे पढ़े और खुलेआम वोटों के लिए अपील भी किया तो इसके मायने आम आदमी ने यह निकाले कि राकेश टिकैत ने ऐलनाबाद में संयुक्त किसान मोर्चा की इज्जत को नीलाम कर दिया है। ऐसे में, किसान मोर्चा को अपनी इज्जत के हुए नुकसान की भरपाई के लिए आखिरकार वरिष्ठ किसान नेता बलबीर सिंह राजोवाल को आगे करना पड़ा। संभवत: संयुक्त किसान मोर्चा के निर्देश पर ही मोर्चा के सबसे वरिष्ठ नेता बलबीर सिंह राजोवाल को वीडियो जारी कर यह कहना पड़ा कि राकेश टिकैत ने ऐलनाबाद में जो कहा, जिस पार्टी की हिमायत की, उससे संयुक्त किसान मोर्चा का कोई लेना देना नहीं है। ऐलनाबाद का आम आदमी, आम वोटर, आम किसान जिसे चाहे अपने विवेक से वोट दें। उनकी लड़ाई सिर्फ सत्ता से है।
राजनीति के जानकार लोग मानते हैं कि किसान संगठनों के इन बड़े नेताओं में फूट का सीधा सा जो अर्थ निकलता है, वह यह है कि राकेश टिकैत ने ऐलनाबाद में एक बड़ा “खेल” करने की कोशिश की थी जिसे संयुक्त किसान मोर्चा ने नाकाम कर दिया है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि टिकैत की घोषणा के बाद जिस पार्टी के उम्मीदवार को फायदा होने की उम्मीद दिख रही थी, उसे आज बलबीर सिंह राजोवाल के बयान के बाद जितना नुकसान पहुंचने वाला है, उसका अंदाजा बहुत ही कम लोगों को है।
बहरहाल देखना दिलचस्प होगा कि ऐलनाबाद की जनता किस व्यक्ति की छवि पर भरोसा करती है, किस नेता की बातों और वादों पर यकीन रख कर बदलाव की राह चलती है या “ढर्रे” को बरकरार रखती है। हालांकि, ऐलनाबाद के ताजा हालात बदलाव की ओर संकेत दे रहे हैं।