कांग्रेस, भाजपा और इनेलो में जीत जिसके भी हिस्से आई, आने वाले समय में उस पार्टी का ग्राफ तेजी से उठेगा
ऐलनाबाद। फिलहाल ऐलनाबाद के वोटरों के सामने जो तीन प्रमुख उम्मीदवार हैं, जाहिर तौर पर उन्हीं में से एक ऐसा होगा जो ऐलनाबाद का विधायक बनेगा। अबकी बार यह भी है कि जिस भी पार्टी का उम्मीदवार विधायक बनेगा, वह सिर्फ विधायक नहीं बनेगा बल्कि अपनी पार्टी का भविष्य भी तय करेगा। आम चुनाव में भले ही अभी काफी समय है परंतु पंचायती और स्थानीय निकाय के चुनाव भी सिर पर हैं। ऐसे में, कौन सी पार्टी ऐलनाबाद मे अपना परचम लहराएगी और उसके आने वाले चुनावों के संदर्भ में क्या मायने हैं, यह किसी से भी छिपा नहीं है।
सबसे पहले बात करते हैं कांग्रेस प्रत्याशी पवन बैनीवाल की। बैनीवाल की जीत के क्या अर्थ हैं और हार के क्या, यह समझना बिलकुल भी मुश्किल नहीं है। बहुत ही साफ और सीधे लफ्जों में कहा जाए तो ऐलनाबाद उपचुनाव में कांग्रेस की जीत उसे उस ‘गर्त’ से निकाल सकने में मददगार साबित हो सकती है जिसमें पार्टी फिलहाल फंसी हुई है। बैनीवाल की जीत कुमारी सैलजा के कद को इतना बड़ा कर देगी कि वह मुख्यमंत्री पद की प्रबल दावेदार बन जाएंगी। बैनीवाल की जीत पूरे हरियाणा में यह संदेश देगी कि किसान कांग्रेस के साथ हैं और आने वाले सभी चुनाव में कांग्रेस का डंका बजेगा। ठीक इसके विपरित, अगर कांग्रेस के प्रत्याशी पवन बैनीवाल हार गये तो इसका ठीकरा भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सिर पर ही फोडऩे की हर मुमकिन कोशिश होगी। बैनीवाल के हारने का मतलब है कि सैलजा का दिल्ली दरबार में रुतबा कम होना और जो सबसे गंभीर बात है, वह यह कि पवन बैनीवाल के हार जाने का मतलब है निकट भविष्य में हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस का सिमट जाना।
पूर्व मुख्यमंत्री औमप्रकाश चौटाला के वरदहस्त वाली इनेलो के प्रत्याशी अभय सिंह चौटाला की बात करें तो उनके पास न खोने के लिए ज्यादा कुछ है और न ही पाने के लिए। हरियाणा में सत्ता का मजा जितना चौटाला सरकार में जिन लोगों ने चखा है, उतना मजा किसी ने आज तक नहीं चखा। इनेलो को अर्श से फर्श पर गिरने के पल-पल के गवाह रहे लोग बताते हैं कि वक्त के साथ न बदलने का जो खामियाजा औमप्रकाश चौटाला और अभय चौटाला ने उठाया है, वह हरियाणा की राजनीति में एक ‘सबक’ के रूप में स्थापित उदाहरण बन गया है। सत्ता को ‘बपौती’ आज तक जिन-जिन ने भी माना है, जनता ने उन्हें सिरे से नकार दिया है। इनेलो की एक ही सीट थी और वह अभय चौटाला ने यह कह कर छोड़ दी कि वह किसानों के हिमायती हैं। फिर से चुनाव होते हैं और अभय चौटाला फिर से यह कर चुनाव फिर से लडऩे उतर पड़ते हैं कि वह किसानों के ‘मसीहा’ हैं। हालांकि, इस्तीफा देने के दिन से लेकर अब चुनाव लडऩे के दिन तक किसानों के हक में बदला कुछ भी नहीं है। ऐसे में, अब ऐलनाबाद का आम आदमी भी गली-चौराहे पर यह सवाल उठा है कि आखिर फिर किसलिए अभय ने इस्तीफा दिया था, जब कुछ बदला ही नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अपनी जनसभाओं में खुद पर ही टमाटर फिंकवा कर ‘खेल’ करने के दिन अब लद गये हैं।
बीजेपी की टिकट पर चुनावी रण में जूझ रहे गोबिंद कांडा की जीत या हार कई मायनों में अहम है। चूंकि, ऐलनाबाद करीब-करीब 17 साल से विपक्ष में रहा है। यानि, अभय चौटाला के पास यह कहने की वजहें थी कि सरकार उनकी नहीं है इसलिए वह ऐलनाबाद के लिए वो सब नहीं कर सके जो ऐलनाबाद को चाहिए था। अभी बीजेपी सरकार को करीब तीन साल का कार्यकाल बाकी है। कांडा और बीजेपी ऐलनाबाद के वोटर में यह भरोसा जगाने में ही जुटी है कि इन तीन सालों में ऐलनाबाद में 30 सालों जितने विकास कार्य करवा दिए जाएंगे। अब बात यह है कि अगर कांडा चुनाव हार जाते हैं तो क्या होगा। राजनीति के जानकार मानते हैं कि सबसे पहला जो काम होगा, वह तो यह होगा कि ऐलनाबाद के विकास की गति जहां है, वहीं रहेगी। दूसरा यह होगा कि चौटाला और बैनीवाल, यानि इनमें से जो भी जीता, उनके ‘लोकल राज’ में वैसे ही जीना, जैसे जीते आए हैं। राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि अगर गोबिंद कांडा ऐलनाबाद का चुनाव जीतते हैं तो संभवत: जो पहला काम जो होगा, वह यह कि यहां से ‘डर-खौफ’ खत्म होगा। बीजेपी सरकार के मौजूदा कार्यकाल के तीन साल अभी बाकी हैं तो सत्ता यहां वह सब करने में सक्षम है जो ऐलनाबाद को चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि अगर बीजेपी ऐलनाबाद चुनाव जीत जाती है तो पूरे हरियाणा में यह संदेश बिलकुल साफ होगा कि आम आदमी बीजेपी के साथ है और किसाना आंदोलन विपक्षी पार्टियों का प्रायोजित एजेंडा मात्र ही है। पंचायती और स्थानीय निकाय के चुनाव में बीजेपी दमदार पॉजिशन में होगी। जाहिर है, यह स्थिति आम चुनाव में फिर से बीजेपी की सरकार बनाने में भी अहम भूमिका निभाएगी।