Friday, April 11, 2025
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श्मशान तक दुश्मनी निभाने की बातें करने वाले ‘चौटालाओं’ के गढ़ में इस बार होगा ‘महासंग्राम’!

ऐलनाबाद के चुनावी खेल में सभी पार्टियों के ‘योद्धा’ अपनी-अपनी तैयारी में बिजी, फिलहाल उम्मीदवारों ने खुद ही संभाल रखी है प्रचार की जिम्मेदारी

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ऐलनाबाद, 16 अक्टूबर। किसानों के काले झंडे, धनबली और बाहुबलियों के बीच इस बार ऐलनाबाद में जिस तरह का संग्राम होगा यकीनन ऐसा पहले कभी ना हुआ होगा। इसकी एक या दो वजह नहीं है, ऐसा होने की बेशुमार वजह हैं। 1967 के बाद से यहां से कम से कम कोई भी ‘चौटाला’ हारा नहीं है और भाजपा आज तक कभी जीती नहीं है। लगातार दो बार 2014 और 2019 में भाजपा प्रत्याशी के तौर पर अभय सिंह चौटाला को टक्कर देने वाले पवन बैनीवाल इस बार कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं। सिरसा के विधायक गोपाल कांडा के भाई एवं रानियां से दो बार चुनाव लड़ चुके गोबिंद कांडा ‘चुनावी खेल’ के पुराने खिलाड़ी हैं और अबकी बार वह भाजपा के प्रत्याशी के रूप में अभय सिंह चौटाला और पवन बैनीवाल को पछाडऩे का इरादा रखे हुए हैं। यहां यह एक जिक्र करना जरूरी है कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं इनेलो प्रमुख औमप्रकाश चौटाला अक्सर यह कहते रहे हैं कि वह तो श्मशान तक दुश्मनी निभाते हैं।


खैर, यह पहला ऐसा चुनाव होगा जब एक आंदोलनकारी तबका भाजपा के उम्मीदवार के न सिर्फ विरोध में है बल्कि गांव-गांव गली-गली उसके खिलाफ झंडे और डंडे उठाने के साथ ही धमकियों और हाथापाई से भी पीछे नहीं हट रहा है। यह पहला चुनाव इस मायने में भी होगा जब दो राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस और भाजपा ने अपनी-अपनी जीत सुनिश्चित करने की प्रक्रिया में दो ऐसे उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में उतारा जिन्होंने महज कुछ दिन पहले ही पार्टियां ज्वाइन कीं। यह पहला चुनाव इस रूप में भी याद रखा जाएगा जब चौटालाओं का गढ़ कहे जाने वाले इस ऐलनाबाद की धरती पर इनेलो उममीदवार अभय सिंह चौटाला को न केवल जीतने में जोर आएगा बल्कि उनके पसीने भी छूटेंगे। यह अभी दूर की बात है कि इस चुनावी खेल में शह और मात कौन किसको देगा क्योंकि, ऐलनाबाद का वोटर फिलहाल चुप है, शांत है और हर एक उस घटनाक्रम पर बहुत ही बारीकी से नजर रख रहा है जो उसे किसी न किसी रूप में प्रभावित कर भी रहा है और भविष्य में भी करेगा। आंकड़ों के खेल में उलझे बगैर सीधी और स्पष्ट बात यह है की अपने ड्राइंग रूम में चंद ‘बुद्धिजीवियों’ की बनाई रणनीतियों के आधार पर ऐलनाबाद के करीब एक लाख 86 हजार वोटरों को अपनी जेब में रखने की गलतफहमियां रखने वाले कुछ नेताओं को इस बार ऐलनाबाद अपनी सोच से बहुत ही बढिय़ा तरीके से एहसास करवा देगा। फिलहाल ऐलनाबाद उपचुनाव में हलचल बहुत कम है और लगभग तीनों ही मुख्य पार्टियों के उम्मीदवार अपने अपने स्तर पर चुनाव प्रचार में डटे हुए हैं। इनेलो कांग्रेस और बीजेपी-जजपा के बड़े नेता संभवत: अभी चुनावी रण में उतरने की तैयारियों में जुटे हैं और आने वाले कुछ ही दिनों में उपचुनाव का संग्राम पूरी गर्माहट लिए हुए सभी को दिखेगा।


यह चुनाव ऐलनाबाद के पहले के चुनावों से थोड़ा अलग और अहम क्यों हैं, इस पर चर्चा करना जरूरी है। फिलहाल ऐलनाबाद उपचुनाव में अभय चौटाला, गोबिंद कांडा और पवन बैनीवाल तीनों ऐसे नेता हैं, जिन्हें न केवल ऐलनाबाद बलिक पूरा हरियाणा जानता-पहचानता है। तीनों परिपक्व हैं और सियासी आसमान में बुलंदियां छूने की ख्वाहिश भी रखते हैं। इनमें से अभय चौटाला ने अपनी सियासी जीवन में शीर्ष भी देखा-भोगा है और अब परिवार बिखरने के बाद पार्टी की बिखरती हालत भी देख रहे हैं। पवन बैनीवाल बरसों-बरस ‘चौटालाओं’ के वफादार रहे और बदली परिस्थितियों में इनेलो से भाजपा में होते हुए अब कांग्रेस की टिकट पर फिर से ऐलनाबाद की जनता के सामने वोटों के लिए हाथ फैलाए खड़े हैं। हालांकि, यहां इस बार का जिक्र भी जरूरी है कि 2014 और 2019 में पवन बैनीवाल ने जब भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा तो उस समय मिले वोट भाजपा को आज तक मिले वोटों से सबसे ज्यादा थे और वह दूसरे स्थान पर रहे। दोनों ही बार वह अभय सिंह चौटाला से करीब-करीब 11-11 हजार वोट से हारे। भाजपा प्रत्याशी गोबिंद कांडा की सबसे पहली पहचान तो यही है कि सिरसा के विधायक गोपाल कांडा के भाई हैं। गोपाल कांडा हुड्डा सरकार में गृह राज्यमंत्री रहे हैं और बलात्कार से लेकर आत्महत्या के लिए उकसाने के केस उन पर दर्ज रहे हैं। गोबिंद कांडा सिरसा जिले की ही रानियां विधानसभा से दो बार अपनी किस्मत आजमा चुके हैं, लेकिन दोनों की बार वह हारे।

बहरहाल, ऐलनाबाद के चुनावी इतिहास में यहां के वोटरों के पास ज्यादातर बार दो ही विकल्प रहे हैं। ऐलनाबाद के पास इस बार सिर्फ दो नहीं तीन विकल्प हैं। कौन किस संदर्भ में किस बात को समझे, यह विवेक का विषय है, लेकिन राजनीति कहती है कि अबकी बार ‘महासंग्राम’ होगा।

-RK Sethi

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