पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भजनलाल के जाने के बाद परिवार सिर्फ उनके नाम पर ही मांगता रहा है वोट, लोगों को सालों से शिकायत कि उनके सुख-दुख में नहीं आता परिवार तो क्यों दें वोट!
जन सरोकार ब्यूरो |
आदमपुर|
भजनलाल परिवार और आदमपुर की जनता में पिछले 54 साल से नाता है। इन 54 सालों में यदि मोटा-मोटा बात करें तो 40 साल तक चौधरी भजनलाल आदमपुर की जनता से सीधे तौर पर जुड़े रहे थे। चौधरी भजनलाल ऐसे नेता थे जो आदमपुर की जनता के सुख और दुख में सबसे पहले आते थे। चौधरी भजनलाल का लोगों के सुख-दुख में आना जाना उस समय भी कभी कम नहीं हुआ जब प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। लेकिन उनके जाने के बाद ना उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई ने और ना ही उनकी पत्नी जसमा देवी, पुत्रवधु रेणुका बिश्नोई और ना ही पोते भव्य बिश्नोई ने कभी आदमपुर को संभाला। आदमपुर के लोगों की पिछले कई सालों से यही शिकायत है कि कुलदीप और उनका परिवार उनके सुख-दुख में शामिल नहीं होता। ऐसे में बड़ा सवाल है कि जब भव्य बिश्नोई और उनका परिवार लोगों के सुख और दुख में शामिल ही नहीं है तो उन्हें वोट क्यों दें। इतना ही नहीं पिछले सालों से विपक्ष में रहते हुए भजनलाल परिवार के आदमपुर से कुलदीप बिश्नोई और रेणुका बिश्नोई एमएल रहे लेकिन उन पर हर बार आरोप लगे हैं कि उन्होंने कभी भी आदमपुर हलके के विकास के लिए विधानसभा में आवाज नहीं उठाई।
लोकसभा में लोगों ने सिखाया था सबक
भजनलाल के बाद लोगों के सुख-दुख में नहीं आने से नाराज हुए आदमपुर के लोगों ने कुलदीप बिश्नोई को सबक सिखाया था। लोकसभा आम चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर भव्य बिश्नोई हिसार से लोकसभा का चुनाव लड़े थे। इस चुनाव में आदमपुर की जनता ने भव्य बिश्नोई को विधानसभा में 24 हजार वोटों से हरा दिया था और चुनाव में भव्य बिश्नोई जमानत भी नहीं बचा पाए थे। इसके बाद से भव्य बिश्नोई लंबे समय तक आदमपुर नहीं आए। लोकसभा मेंं आदमपुर विधानसभा से मिली करारी हार के बाद भी परिवार ने इसका मलाल करने की बजाया उल्टा लोगों को ही दोषी ठहरया था। हार के बाद कुलदीप बिश्नोई और रेणुका अनाज मंडी की अपनी दुकान पर लोगों से मिलने आए थे और कुलदीप बिश्नोई ने गुस्से में लोगों से कहा था कि उनके परिवार ने आदमपुर के लिए इतना कुछ किया लेकिन उन्हेें इतने वोटों से हरा दिया। कुलदीप ने यह भी कहा था जिसको आपने वोट दिए हैं अब देख लेना वो कितना आएगा आपके सुख-दुख में और बीच में ही माइक छोड़कर चले गए थे। अब देखना है कि आदमपुर की जनता उनके सुख-दुख में शामिल नहीं होने वाले और भजनलाल के नक्शे कदम पर नहीं चलने वाले उनके परिवार के सदस्यों को 3 नवंबर को होने वाली वोटिंग के माध्यम से क्या जनादेश देगी।