हर बार भजनलाल परिवार के सामने नये उम्मीदवार आने से इन्हें ही चुनने के मझधार में आदमपुर की जनता क्या इस बार भी पिछले लोकसभा चुनाव की तरह कोई उलटफेर करेगी

जन सरोकार ब्यूरो |
आदमपुर| आदमपुर की जनता पिछले 54 साल से भजनलाल परिवार को विधायक बना रही है, यहां भजनलाल के सीएम रहते जो काम हुए उनका असर जनता पर ऐसा है कि पिछले 26 साल से विपक्ष में रहा यह हलका हर बार इसी परिवार के सदस्य को विधायक बना देता है, इसी कारण कुलदीप बिश्नोई को इस बार के उपचुनाव में यह लग रहा है कि आदमपुर की जनता हर बार की तरह इस बार भी उनने परिवार को ही वोट देगी और उनका बेटा भव्य बिश्नोई आसानी से जीत जाएगा। लेकिन यदि धरातल की बात करें तो कुलदीप बिश्नोई के दावों और हकीकत में बहुत अधिक फर्क साफ देखा जा सकता है।
इस समय जिन युवाओं को हार और जीत का फैसला करना है, वह 18-30 साल की पीढ़ी है जिनमें से अधिकतर ने चौधरी भजनलाल का राज ही नहीं देेखा। ऐसे युवा पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे इस वंशवाद को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। लेकिन कुलदीप बिश्नोई बड़ी ही रणनीति के तहत आदमपुर की जनता को 54 साल का इतिहास और उनका आदमपुर से परिवारिक संबंध बताकर इमोशनल करने में लगे हुए हैं। जिससे उन्हेंं लगता है कि आदमपुर की जनता उनके बेटे को वोट देगी ही क्योंकि उनके पास कोई और चारा नहीं है।
सभाओं में नजर आते हैं ओवरकॉन्फिडेंट !
चुनाव घोषित होने के बाद से कुलदीप बिश्नोई आदमपुर विधानसभा के विभिन्न गांवों मेें जनसभाएं कर अपने बेटे के लिए वोटों की अपील कर रहे हैं। जनसभाओं में कुलदीप बिश्नोई इतने ओवर कॉन्फिडेंट नजर आते हैं कि जैसे उन्हें लगता है कि आदमपुर के पास उनके सिवाए कोई चारा नहीं है तथा आदमपुर के लिए जो कुछ भी कर सकता है वो सिर्फ कुलदीप बिश्नोई ही कर सकता है। लेकिन हकीकत यह है कि इसी भाषण के दौरान उनके पास पिछले 26 में एक भी ऐसा काम गिनवाने के लिए नहीं होता जो उन्होंने आदमपुर के विकास में किया हो।
मजबूत विकल्प नहीं मिलने से पसोपेश में आदमपुर!
साढ़े 12 साल तक प्रदेश पर राज करने वाली आदमपुर विधानसभा की भजनलाल परिवार “मजबूरी” बन गया है। इसका एक कारण यह है कि यहां हर बार दूसरी पार्टियां अपने उम्मीदवार बदल देती हैं। हर बार यहां भजनलाल परिवार के सामने विपक्षी पार्टियां नया उम्मीदवार उतार देती हैं जिसके चलते आदमपुर की जनता के पास मजबूत विकल्प का अभाव हो जाता है। उपचुनाव की वोटिंग में सिर्फ 11 दिन का समय बाकी है।
देखना होगा कि आदमपुर की जनता इस बार भी अपनी “मजबूरी” बन चुके भजनलाल परिवार को ही वोट देती है या कोई नया इतिहास बनाती है। बड़ा सवाल है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतदाता आखिर कब तक मजबूर रहेगा और खास बात है कि जिस तरह से परिवारवाद आदमपुर पर हावी होकर लोगों की मजबूरी बन गया है यह किसी भी एंगल से लोकतंत्र के लिए बेहतरी की स्थिति तो बिलकुल नहीं है।