आदमपुर उप चुनाव में सभी पार्टियों के लिए हार और जीत से भी अधिक महत्वपूर्ण है पूरे प्रदेश की जनता को 2024 के आम चुनाव के अपने विजन का मैसेज देना, आदमपुर में हैं 49 हजार जाट मतदाता
जन सरोकार ब्यूरो।
आदमपुर।
साल 2024 के आम चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा आदमपुर का उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए केवल जीत और हार का ही सवाल नहीं है बल्कि पार्टियां इस उपचुनाव के माध्यम से पूरे प्रदेश में अपने विजन को विस्तार देने में लगी हुई हैं। यही कारण है कि इस चुनाव में दीपेंद्र और भूपेंद्र हुड्डा से लेकर अभय-ओपी चौटाला और भगवंत मान से लेकर अरविंद केजरीवाल तथा कुलदीप बिश्नोई से लेकर मनोहर लाल तक ने पूरी ताकत लगाई हुई है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि भले ही सभी विपक्षी पार्टियां आदमपुर की बदहाली पर और भजनलाल परिवार और भाजपा आदमपुर की दो साल में खुशहाली पर वोट मांग रही हैं लेकिन इस चुनाव में बड़े स्तर पर ध्रुवीकरण होना ना सिर्फ तय है बल्कि इसके लिए पार्टियां अंदर खाते लगी भी हुई हैं।
अब बात करते हैं आदमपुर में मतदाताओं की। करीब 1.71 लाख वोटों वाली इस विधानसभा में 28% यानि 48 हजार वोटर जाट हैं और खुद को जाट नेता साबित करने के लिए इनेलो के अभय-ओपी चौटाला और कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा में सालों से जद्दोजहद चल रही है। ऐसे में इस उपचुनाव में जाट वोटर हुड्डा की तरफ जाएगा या चौटाला की तरफ, इस बात पर पूरे आदमपुर ही नहीं बल्कि हरियाणा की नजरें टिकी हुई हैं। हरियाणा की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले और आदमपुर के उपचुनाव को बड़े करीब से देख रहे जानकारों की मानें तो हुड्डा और चौटाला ने आदमपुर के ही नहीं बल्कि प्रदेश के इस बड़े वोटबैंक को अपनी तरफ करने में अंदर खाते पूरी ताकत लगाई हुई है। इतना ही नहीं, जानकार यह भी मानते हैं कि ध्रुवीकरण का असली खेल तो अभी अगले दो-दिन में शुरू होना है। वहीं, अगर बात करें कुलदीप बिश्नोई की तो उनके खासमखास रहे पोकरमल के परिवार के अलग होकर हुड्डा के साथ जाने से उनके परंपरागत बिश्नोई वोटों में भी सेंध लगती दिखाई दे रही है। साथ ही, आम आदमी पार्टी लगातार शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर वोट मांग रही है तथा लोगों को कहा जा रहा है कि स्वास्थ्य और शिक्षा हर व्यक्ति को चाहिए, इसलिए इसके नाम पर वोटिंग होनी चाहिए। आदमपुर उपचुनाव की वोटिंग में मात्र 6 दिन का समय बाकी है जबकि प्रचार करने के लिए मात्र 4 दिन बचे हैं। कल से चुनाव के समीकरण घंटों के हिसाब से बदलने शुरू हो जाएंगे। ऐसे में, देखना है कि कौन पार्टी किसी मतदाता वर्ग को अपनी ओर अट्रेक्ट करने में क्या-क्या दांव लगाएगी और उनमें कितनी कामयाब रहेगी। लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं कि कोई भी पार्टी अपने प्रत्याशी को जितवाने में कोई कमी नहीं छोड़ने वाली। अपने प्रयासों और अपने विजन को लोगों तक पहुंचाने में कौन कितना कामयाब होगा और जनता किसे अपनाएगी और यह कितना वोट में तबदील हो पाएगा, इसके लिए 6 नवंबर का इंतजार करना होगा।